नई दिल्ली : राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) सैयद अता हसनैन ने मंगलवार को कहा कि उत्तरकाशी के निर्माणाधीन सुरंग में फंसे श्रमिकों को सुरक्षित निकालना हमारी प्राथमिकता है। उन्हें बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसिया दिन-रात काम कर रही हैं। इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों से भी मदद ली जा रही है।
हसनैन ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सुरंग में फंसे सभी 41 लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए कई तरह के प्रयास विशेषज्ञों की निगरानी में किए जा रहे हैं। मजदूरों तक पहुंचने के लिए पांच अलग-अलग जगहों से खुदाई अभियान चालू है। वहां पर फंसे लोगों को खाना, पानी, दवा आदि पहुंचाया गया है। हमें 06 इंच व्यास की पाइप लाइन के सफलतापूर्वक मलबे के आरपार किए जाने व इसके माध्यम से भोजन एवं अन्य आवश्यक सामान श्रमिकों तक पहुंचाने में सफलता मिली है। वहां 04 इंच का पाइप पहले ही था, अब 06 इंच का पाइप पहुंचाने में सफलता मिली है।
हसनैन ने कहा कि मौके पर एनडीआरएफ, भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल, सेना के इंजीनियर, एसडीआरएफ, अग्निशमन और आपातकालीन सेवाएं, बीआरओ और भारत सरकार की अन्य तकनीकी एजेंसियां वहां काम कर रही हैं। सुरंग में फंसे मजदूरों के परिजनों को उत्तरकाशी ले जाया जा रहा है। कुछ मजदूरों के परिजन वहां पहुंचे हैं। सुरंग में उत्तराखंड के 02, हिमाचल प्रदेश के 01, उत्तर प्रदेश के 08, बिहार के 05, पश्चिम बंगाल के 03, असम के 02, ओडिशा के 05 और झारखंड के सबसे अधिक 15 मजदूर फंसे हैं।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव अनुराग जैन ने कहा कि श्रमिकों को बचाने के लिए सभी एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं। उत्तरकाशी के सिलक्यारा से बरकोट के बीच निर्माणाधीन सुरंग में 12 नवंबर को सिलक्यारा की तरफ सुरंग के 60 मीटर हिस्से में मलबा गिरने से सुरंग ढह गई थी जिसके चलते 41 श्रमिक फंस गए थे। फंसे हुए सभी 41 मजदूरों को बचाने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से तत्काल आवश्यक उपाय किए गए और जरूरी संसाधन जुटाए गए।
बचाव अभियान के शुरुआती चरण में मलबे के बीच से 900 मिमी की पाइप पहुंचाई गई और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के कारण एक साथ कई बचाव विकल्पों का पता लगाया गया। निर्माण से जुड़े कर्मी जहां पर फंसे हुए हैं उसकी ऊंचाई 8.5 मीटर और लंबाई 02 किलोमीटर है, जो निर्माणाधीन सुरंग का हिस्सा है। जगह की पर्याप्तता के चलते बिजली और पानी की आपूर्ति करने में आसानी हुई है और मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करने में मदद मिली है।