नई दिल्ली : (New Delhi) देश के तेल बाजार में बीते हफ्ते अफवाहों का ऐसा असर हुआ कि सोयाबीन और मूंगफली जैसे प्रमुख तेलों की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। सहकारी संस्था नेफेड द्वारा 21 अप्रैल से सोयाबीन बिक्री की खबरों और गुजरात में मूंगफली की सरकारी बिक्री ने बाजार में घबराहट का माहौल बना दिया, जिससे कारोबारी धारणा प्रभावित हुई और खाने के तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली।
सोयाबीन बिक्री की अफवाहों से बिगड़ा संतुलन
बाजार सूत्रों के अनुसार, नेफेड की संभावित सोयाबीन बिक्री की खबरों ने कारोबारियों को चिंता में डाल दिया। पहले से ही गुजरात में सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से 17-18% कम कीमत पर मूंगफली बेच रही थी। इन दो घटनाओं ने मिलकर बाजार को और कमजोर किया। कच्चे पाम तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें 1,125-1,130 डॉलर प्रति टन से घटकर 1,100-1,105 डॉलर प्रति टन पर आ गईं।
सरकारी फैसले भी बेअसर, आयातकों की हालत खराब
हालांकि सरकार ने सोयाबीन डीगम पर आयात शुल्क 81 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर बाजार को मजबूत करने की कोशिश की थी, लेकिन अफवाहों की मार के चलते इसका कोई असर नहीं दिखा। आयातकों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे तेल को लागत से भी कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं। सरसों और मूंगफली तेल की कीमतें भी इस गिरावट की चपेट में आ गई हैं।
बिक्री पर रोक की मांग, किसान चिंता में
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) ने नेफेड की संभावित बिक्री पर रोक लगाने की मांग की है। संगठन का कहना है कि इस तरह की बिक्री से किसानों की बोवाई पर असर पड़ेगा और उत्पादन में गिरावट हो सकती है। एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि ऐसी रणनीतियां खेती के लिए नुकसानदेह हैं।
थोक गिरावट का फायदा उपभोक्ताओं तक नहीं
बाजार सूत्रों का कहना है कि थोक बाजार में दाम कम होने के बावजूद आम उपभोक्ताओं को कोई खास राहत नहीं मिल रही है। उदाहरण के तौर पर, मूंगफली तेल का थोक दाम गिरने के बावजूद यह खुदरा बाजार में 195 रुपये प्रति लीटर तक बिक रहा है। विशेषज्ञों ने सरकार और तेल कंपनियों से मांग की है कि वे यह सुनिश्चित करें कि गिरावट का लाभ ग्राहकों तक पहुंचे।
देश में सूरजमुखी तेल पूरी तरह आयात पर निर्भर
किसानों के भरोसे में आई कमी का असर फसलों पर साफ दिख रहा है। पहले जहां आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सूरजमुखी और मूंगफली की खेती जोरों पर थी, अब वहां उत्पादन बेहद कम हो गया है। ऐसे में देश सूरजमुखी तेल के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर हो गया है, जो चिंता का विषय है।