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New Delhi : ‘झूठा’ बोलने पर भड़कीं निर्मला सीतारमण, बोलीं – जयराम रमेश लिखित में मांगें माफी

नई दिल्ली : (New Delhi) राज्यसभा में सोमवार को संविधान के 75 गौरवशाली वर्ष पर केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Union Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने चर्चा की शुरुआत की। चर्चा के दौरान निर्मला सीतारमण ने संविधान संशोधन को लेकर कांग्रेस की गलतियां गिनवाईं। इस बीच केन्द्रीय मंत्री सीतारमण और कांग्रेस सांसद जयराम रमेश (Union Minister Sitharaman and Congress MP Jairam Ramesh) के बीच तीखी नोकझोंक हुई । जीएसटी के मुद्दे पर कांग्रेस के सांसद जयराम रमेश ने केन्द्रीय मंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया, जिस पर निर्मला सीतारमण भड़क गईं और उनसे लिखित में माफी देने की मांग की।

निर्मला सीतारमण ने कहा कि जीएसटी का कांग्रेस ने विरोध किया था। इस पर जयराम रमेश ने कहा कि भाजपा शासित प्रदेश गुजरात ने सबसे पहले इसका विरोध किया था।इस पर जयराम रमेश ने उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। इस आरोप पर निर्मला भड़क गईं और सभापति से आग्रह करने लगीं कि जयराम रमेश इसके लिए लिखित में माफी मांगें।

निर्मला सीतारमण ने कहा, “मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगाने के लिए माफ़ी मांगनी होगी, जो मैं कभी नहीं करती। लेकिन मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगाना अब कांग्रेस के खून में है। जब मैं रक्षा मंत्री थी तो उन्होंने न केवल प्रधानमंत्री मोदी को चोर कहा, बल्कि वे मुझ पर झूठ बोलने का आरोप भी लगाते रहे। अब मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी अगर कोई दूसरा सदस्य अदालत जाकर माफ़ी मांगे। कांग्रेस सांसदों सहित सदन में मौजूद सभी सांसदों ने जीएसटी संविधान संशोधन के लिए मतदान किया, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने लाया था। जयराम रमेश कुछ संशोधन पेश करना चाहते थे लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह (पूर्व प्रधानमंत्री) ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें ऐसा न करने के लिए कहा, क्योंकि जीएसटी परिषद में अच्छी आम सहमति बन गई है। जीएसटी संविधान संशोधन को पारित करने में कांग्रेस द्वारा दिए गए समर्थन के बावजूद आपके पास एक कांग्रेस नेता है, जो जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहता है।”

दोनों के बीच आपातकाल के समय 1976 में इंदिरा गांधी द्वारा किए गए 42वें संशोधन को लेकर भी कहा-सुनी हुई । जयराम रमेश ने कहा कि इंदिरा गांधी ने खुद 1978 में 44वें संशोधन का समर्थन किया था, जिसमें 42वें संशोधन के कुछ हिस्सों को निरस्त करने की मांग की गई थी, क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि उनका चुनावी नुकसान हुआ है।

इस पर निर्मला सीतारमण

कहा कि जिस तरह से 42वां संशोधन पारित किया गया, उस पर ग्रैनविले ऑस्टिन ने कहा कि कैसे विपक्षी नेता जेल में थे। राज्यसभा में एक भी व्यक्ति ने विरोध नहीं किया। लोकसभा में उनमें से सिर्फ 5 ने इसके खिलाफ बोला लेकिन जयराम रमेश ने ऑस्टिन की इन बातों को नजरअंदाज कर दिया।

इस पर ऑस्टिन को कोट करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि 44वें संशोधन को लोकसभा और राज्यसभा द्वारा 42वें संशोधन के बड़े हिस्सों को अधिलेखित करने के लिए पारित किया गया था। 7 दिसंबर, 1978 को 42वें संशोधन के कुछ हिस्सों को निरस्त करने के लिए खुद इंदिरा गांधी ने वोट किया था। उन्होंने 1978 में 42वें संशोधन के उन हिस्सों को निरस्त करने के लिए मतदान किया, जिसके कारण उन्हें पता चला कि इससे उन्हें चुनावी हार का सामना करना पड़ा है।

जयराम के हस्तक्षेप के तुरंत बाद सदन के नेता जेपी नड्डा ने हस्तक्षेप किया और कहा कि उस समय मोरारजी देसाई की सरकार थी। सीतारमण ने कहा कि इंदिरा गांधी ने 42वें संशोधन के बाद देश में हुए चुनाव में “भारी हार” का सामना किया। उसके बाद 44वें संशोधन का समर्थन किया, जिसने उन्हें “सबक सिखाया”।

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