उपराष्ट्रपति धनखड़ ने वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए उभर रहे समुद्र पर चिंता जताई
नौसेना प्रमुख ने समुद्री शक्ति के रूप में भारत की बढ़ती ताकत पर जोर दिया
नई दिल्ली : हिंद-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए बुधवार से नई दिल्ली के मानेकशा सेंटर में भारतीय नौसेना का वार्षिक शीर्ष स्तरीय ‘इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग’ (आईपीआरडी) शुरू हुआ। सम्मेलन के पहले दिन की शुरुआत उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मुख्य भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि समुद्र अपनी विशाल आर्थिक क्षमता के कारण वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए नई सीमा के रूप में उभर रहे हैं। उन्होंने समुद्र पर दावों की संभावना को रोकने के लिए एक नियामक व्यवस्था और उसके प्रभावी प्रवर्तन पर जोर दिया।
इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विश्व स्तर के विशेषज्ञों और प्रख्यात वक्ताओं के माध्यम से छह पेशेवर सत्रों में इंडो-पैसिफिक समुद्री व्यापार और कनेक्टिविटी पर भू-राजनीतिक प्रभावों का पता लगाया जाएगा। उपराष्ट्रपति ने ‘बिल्डिंग पार्टनरशिप-भारत और समुद्री सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग’ नामक पुस्तक का विमोचन किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘समुद्री परिप्रेक्ष्य: भारत-प्रशांत में समुद्री सुरक्षा गतिशीलता: रणनीतियां और रुझान’ शीर्षक से एक संपादित खंड जारी किया। दोनों पुस्तकें नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन ने प्रकाशित की हैं।
भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ दार्शनिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि शांतिपूर्ण और समृद्ध क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिए सहयोगात्मक सुरक्षा और नवीन साझेदारी ही आगे बढ़ने का रास्ता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि कमजोरी की स्थिति से शांति की आकांक्षा करना संभव नहीं है, इसलिए सभी बुनियादी सिद्धांतों में मजबूत होने की आवश्यकता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने विशेष संबोधन में कहा कि आईपीआरडी ने खुद को रायसीना डायलॉग के समुद्री संस्करण के रूप में स्थापित करके काफी लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने भारत के आर्थिक विकास में समुद्री कनेक्टिविटी के महत्व पर जोर दिया और भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) के प्रमुख पहलुओं पर भी प्रकाश डाला, जिसकी घोषणा इस साल नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में की गई थी।
नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार ने समुद्री शक्ति के रूप में भारत की बढ़ती ताकत पर जोर दिया। उन्होंने समुद्री गलियारों की प्रासंगिकता और सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक वातावरण के बारे में बात की। साथ ही उन्होंने क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को प्रभावित करने वाले गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने की आवश्यकता पर जोर दिया। हाल ही में संपन्न गोवा मैरीटाइम कॉन्क्लेव का उदाहरण देते हुए उन्होंने इंडो-पैसिफिक में भारतीय नौसेना की सहयोगी और सहकारी पहलों के बारे में बताया।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन दो पेशेवर सत्र ‘समुद्री कनेक्टिविटी के नोड्स’ और ‘भारत-प्रशांत में समुद्री कनेक्टिविटी पहल’ विषयों पर केंद्रित थे। पहले सत्र में बंदरगाह, जहाजरानी और जल मार्ग मंत्रालय के सचिव टीके रामचंद्रन के संचालन में जापान, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और भारत के विश्व स्तर पर प्रसिद्ध प्रतिभागियों के साथ बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास पर केंद्रित विचार-विमर्श हुआ। दूसरे सत्र में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने आमंत्रण संबोधन में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के ऐतिहासिक और साथ ही समकालीन महत्व पर प्रकाश डाला, जो भारत के दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य पर आधारित था।
इसके बाद जापान, केन्या, नेपाल, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों के साथ एक पैनल चर्चा हुई। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों पर चर्चा के दौरान विश्व स्तर पर भारत को जोड़ने में महासागरों के महत्व और विकास के माध्यम से सुरक्षा के समग्र दृष्टिकोण पर भी विचार-विमर्श किया गया। पहले दिन की कार्यवाही दो समझौता ज्ञापनों के साथ संपन्न हुई, जिन पर नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन (एनएमएफ), नेपाल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड इंगेजमेंट (एनआईआईसीई) और द ग्लोबल सेंटर फॉर पॉलिसी एंड स्ट्रेटेजी (जीएलओसीईपीएस) केन्या के बीच हस्ताक्षर किए गए।