नयी दिल्ली : केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने बृहस्पतिवार को कहा कि कोई समाज या देश उस स्थिति में अपनी उपलब्धियों का जश्न नहीं मना सकता, जब उसकी महिलाएं और बच्चे सुरक्षित नहीं हैं।
रीजीजू ने बाल यौन शोषण के अपराध को सबसे गंभीर और परेशान करने वाली चुनौतियों में से एक करार दिया।
दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा ‘बाल यौन शोषण सामग्री’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में कानून मंत्री ने कहा, ‘हमें कानूनी प्रावधानों के परे जाकर देखना होगा’’ और महिलाओं तथा बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समाज को एकजुट होना चाहिए।
रीजीजू ने सम्मेलन को समयानुकूल और प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि इससे ठीक निष्कर्ष निकलकर सामने आएंगे।”
केंद्रीय मंत्री ने अपने संबोधन में जोर देकर कहा कि अगर किसी समाज या देश में महिलाएं और बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, तो वह अपनी उपलब्धियों का जश्न नहीं मना सकता।
उन्होंने खासतौर पर बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा से निपटने पर जोर दिया और सभी हितधारकों और समाज से इसकी रोकथाम की दिशा में अधिक प्रयास करने का आग्रह किया।
रीजीजू ने कहा, “बच्चों के खिलाफ हिंसा, खासकर बाल यौन शोषण… मुझे लगता है, और यह सभी के लिए है कि यह सबसे गंभीर और परेशान करने वाली चुनौती है।”
उन्होंने कहा, “अपराध तो सभी बुरे होते हैं, लेकिन बच्चों के खिलाफ अपराध को बर्दाश्त कर पाना मुश्किल है। आप बच्चों के खिलाफ अपराध कैसे कर सकते हैं? हमें अपने दृष्टिकोण में अत्यधिक गंभीर होना होगा। इसे सिर्फ एक अपराध के तौर पर नहीं लिया जा सकता। अगर आप इसे सिर्फ अपराध के तौर पर देखेंगे, तो हम इससे सामान्य अपराध की तरह ही निपटेंगे।”
रीजीजू ने बृहस्पतिवार को एनएचआरसी अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा और आयोग के सदस्यों के अलावा संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों, कानूनी विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और विद्वानों की मौजूदगी में सम्मेलन का उद्घाटन किया।
दो दिवसीय इस सम्मेलन का मकसद बच्चों के लिए सुरक्षित साइबरस्पेस की कवायद पर विचार-विमर्श के बाद, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित नीति निर्माताओं और सामग्री जारी करने वालों (कन्टेन्ट होस्ट) के लिए सुझाव तैयार करना है।
रीजीजू ने सीएसएएम को एक ‘बड़ा खतरा’ बताते हुए कहा कि वह इस सम्मेलन के बाद एनएचआरसी से सुझाव, सिफारिशें और कार्रवाई योग्य बिंदु प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं।
एनएचआरसी प्रमुख ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘हमने पिछले दशक में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में काफी तेजी देखी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2020 के अंत तक, भारत में लगभग 70 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता थे। व्यक्तिगत गोपनीयता सहित नागरिक और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए साइबरस्पेस का दुरुपयोग किया जा रहा है। साइबर अपराध से लड़ने और मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए साइबर सुरक्षा एक कुंजी है। डिजिटल फॉरेंसिक विज्ञान अपराध न्याय प्रणाली के उल्लंघन पर अंकुश लगाने और मानवाधिकारों को संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने के लिए एक आधारस्तंभ है। यह कानून के शासन को मजबूत करता है।’’
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि साइबर क्षेत्र में ‘‘96 प्रतिशत डार्क वेब’’ है और यह महिलाओं, बच्चों, आदिवासियों और समाज के कमजोर वर्गों से जुड़ी दासता तथा यौन तस्करी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे शक्तिशाली माध्यम है।
उन्होंने रेखांकित किया कि सीएसएएम, नशीली दवाओं की तस्करी, जबरन वसूली, आतंकवाद और संगठित अपराध वैश्विक चुनौतियां हैं।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि ऑनलाइन सीएसएएम ‘‘बाल शोषण के सबसे खराब रूपों’’ में से एक है और यह बच्चों के यौन शोषण और बाल पीड़ितों के साथ लगातार छेड़छाड़ को बढ़ावा देता है, जिसका उन पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने आगाह किया कि तेजी से विकसित हो रहे ऑनलाइन सीएसएएम के लिए ‘कोई क्षेत्रीय सीमा नहीं है’।
एनएचआरसी के अध्यक्ष ने कहा कि गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल से पता चलता है कि भारत ‘‘आज दुनिया में सबसे कमजोर देशों में से एक’’ के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि ‘‘भारत साइबर खतरों की संख्या के मामले में तीसरे और लक्षित हमलों की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है।’’
एनएचआरसी प्रमुख ने कहा कि इस तरह के अपराधों की जांच के लिए अधिक कम्प्यूटरीकृत फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं और सूचना प्रौद्योगिकी सुरक्षा से संबंधित उत्कृष्ट केंद्र की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि वैश्विक और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर समन्वित प्रयास से हम डिजिटल दुनिया को सफलतापूर्वक अपने बच्चों के लिए सुरक्षित बना सकेंगे।’’