New Delhi : भोपाल गैस त्रासदी: उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की उपचारात्मक याचिका खारिज की

New Delhi : Bhopal Gas Tragedy: Supreme Court dismisses curative petition of Central Government

नयी दिल्ली: (New Delhi) उच्चतम न्यायालय ने दिसंबर 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया।इस त्रासदी में 3,000 से अधिक लोग मारे गए थे और पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा था।शीर्ष अदालत ने पूर्व में अदालत को दिए गए हलफनामे के संदर्भ में पीड़ितों के लिए बीमा पॉलिसी तैयार नहीं करने के लिए भी केंद्र को फटकार लगाई और इसे ‘‘घोर लापरवाही’’ करार दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ कल्याणकारी देश होने के नाते कमियों को दूर करने और प्रासंगिक बीमा पॉलिसियां तैयार करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार को दी गई थी। आश्चर्यजनक है कि हमें बताया गया कि ऐसी कोई बीमा पॉलिसी नहीं बनाई गई। यह भारत सरकार की घोर लापरवाही और इस न्यायालय के समीक्षा निर्णय में जारी निर्देशों का उल्लंघन है। केंद्र इस पर लापरवाही बरत कर यूसीसी की जिम्मेदारी तय करने का अनुरोध नहीं कर सकता।’’न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समझौते के दो दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं बनता।शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ितों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के पास पड़ी 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल केंद्र सरकार पीड़ितों के लंबित दावों को पूरा करने के लिए करे।पीठ ने कहा कि अतिरिक्त मुआवजे के लिए केंद्र के अनुरोध का कोई कानूनी आधार नहीं बनता।

अदालत ने कहा, ‘‘ या तो समझौता वैध था या धोखाधड़ी के मामलों में इसे रद्द किया जाए। केंद्र द्वारा ऐसी किसी भी धोखाधड़ी की बात नहीं की गई और उनका एकमात्र विवाद कई लोगों के हताहत होना और लागतों से संबंधित है, जिन पर समझौते के समय विचार नहीं किया गया। ’’पीठ ने कहा, ‘‘ यह पता था कि लोगों के पुनर्वास के लिए चिकित्सकीय सुविधाओं का विस्तार करना होगा और पर्यावरण को नुकसान होना तय था। वास्तव में, यूसीसी का आरोप है कि भारत सरकार और राज्य ने सक्रिय रूप से घटनास्थल को ‘डिटॉक्सिफाई’ नहीं किया। किसी भी मामले में यह समझौते को रद्द करने की मांग करने का आधार नहीं हो सकता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘ हम दो दशकों बाद इस मुद्दे को उठाने के केंद्र सरकार के किसी भी तर्क से संतुष्ट नहीं हैं … यह मानते हुए भी कि प्रभावित पीड़ितों के आंकड़े अपेक्षा से अधिक निकले तो भी ऐसे दावों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध रहती है…हमारा मानना है कि उपचारात्मक याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।’’पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी भी शामिल हैं। पीठ ने मामले पर 12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।केंद्र 1989 में हुए समझौते के हिस्से के रूप में अमेरिकी कंपनी से प्राप्त 715 करोड़ रुपये के अलावा अमेरिका स्थित यूसीसी की उत्तराधिकारी कंपनियों से 7,844 करोड़ रुपये और चाहता है।मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए केंद्र ने दिसंबर 2010 में शीर्ष अदालत में उपचारात्मक याचिका दायर की थी।

केंद्र इस बात पर जोर देता रहा है कि 1989 में मानव जीवन और पर्यावरण को हुई वास्तविक क्षति का ठीक से आकलन नहीं किया जा सका था।भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव होने लगा था, जिसके कारण 3000 से अधिक लोग मारे गए थे और एक लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। इससे पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचा था।यूनियन कार्बाइड संयंत्र ने तब 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा दिया था। इस कंपनी का स्वामित्व अब ‘डाउ जोन्स’ के पास है।