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मुंशी प्रेमचंद जयंती : राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोले एक्सपर्ट- आज भी चर्चा में हैं प्रेमचंद की रचनाएँ और उनके पात्र

प्रेमचंद के उपन्यास गोदान का होरी हो या निर्मला अथवा अन्य कोई पात्र, प्रेमचंद की रचनाएँ और उनके द्वारा रचित पात्र समकालीन होने के बाद भी आज भी प्रासंगिक हैं। प्रेमचंद जी पर जितनी चर्चा की जाए कम है। आज जितने भी विमर्श चल रहे हैं, उनका चित्रण प्रेमचंद की कहानियों एवं उपन्यासो में मिलता है। ये बातें आज के सेमिनार से यथार्थ रूप से स्पष्ट हो ग्ई। हिन्दी महिला परिषद ट्रस्ट- मुंबई द्वारा प्रेमचंद की जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल मुख्य अतिथि डॉ. दयानंद तिवारी,धन्यकुमार विराजदार, शिवशंकर पाठक हिन्दी साहित्य और मुंशी प्रेमचंद: वर्तमान परिदृश्य को लेकर वेब संगोष्ठी में इस विषय पर संक्षिप्त रूप से चर्चा की गई।

प्रेमचंद जी की कहानियों में नारी चित्रण य़थार्थ को अभिव्यक्त :
विशिष्ट वक्ता मुंबई से डॉ. दयानंद तिवारी ने कहा कि प्रेमचंद के पूर्व कहानियों में कल्पना की उड़ान देखने को मिलती है।प्रेमचंद जी की ‘बड़े घर की बेटी’कहानी की नायिका से उन्होंने यह संदेश महिलाओं को दिया है कि अच्छे संस्कार किस प्रकार से पूरे कुटुंब को सजोंकर रखती है।आज जितने भी विमर्श चल रहे हैं नारी – चित्रण पर, प्रेमचंद की रचनाओं में अभिव्यक्त किए जा चुके हैं। ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नारी विमर्श की शुरुआत प्रेमचंद से हो चुकी थी। प्रेमचंद के दौर की अनेक सामाजिक समस्याएँ आज भी यथावत देखने को मिलती हैंं। प्रेमचंद के बारे में जितना सोचा जाए, उनके बारे में उतना लिखने की प्रेरणा मिलती है।किसान, मजदूर एवं दलित वर्ग का ऐसा साहित्य है जिसकी प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं होगी।प्रेमचंद जी सार्वभौम मानवता के प्रबल समर्थक थे.

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धन्यकुमार विराजदार वेब संगोष्ठी के वक्ता सोलापुर से कहा कि मुंशी प्रेमचंद सार्वभौम मानवता के प्रबल समर्थक थे। प्रेमचंद की दृष्टि में साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, वह समाज का दीपक भी है और उसका कार्य समाज का यथार्थ दिखाना ही नहीं, समाज को प्रकाश दिखाना भी है। प्रेमचंद के उपन्यास में नारी चित्रण हिन्दी में यथार्थवाद की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद जी साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए हैं जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमित है। उन्होंने कहा कि गोदान में होरी हो या निर्मला अथवा अन्य कोई पात्र, प्रेमचंद की रचनाएँ और उनके द्वारा रचित पात्र समकालीन होने के बाद भी आज काफी लोकप्रिय हैं। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के दीपक हैं जिनकी चमक कभी कम नहीं हो सकती। इनकी कथा साहित्य का ताना-बाना हम जस के तस पाते हैं।

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वक्ता शिवशंकर पाठक ने इस अवसर पर कहा कि प्रेमचंद सदैव प्रासंगिक रहेंगे। कलम के सिपाही के रूप में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया जिसे कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। सामाजिक कुरीतियों को हटाकर मानवीय मूल्यों की स्थापना करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य जगत के ऐसे तेजस्वी सितारे हैं जिसकी चमक हिन्दी साहित्य को हमेशा रोशन करती रहेगी। इसके साथ सभी वक्ताओं ने अपने वाणी को विराम दिया। विभिन्न कॉलेजों से शिक्षकगण भी इस सेमिनार में उपस्थित थे।

इस अवसर पर हिंदी महिला परिषद ट्रस्ट के संस्थापक प्रेमचंद शुक्ल, अध्यक्ष डॉ.निशा मिश्रा, उपाध्यक्ष सोनू कोरी, महासचिव मधु तिवारी सचिव पुष्पा यादव उपस्थित थे। इस कार्यक्रम का बहुत ही सुंदर संचालन उपसचिव लता जोशी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ रूली सिंह ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से किया एवं समापन स्मिता कुलकर्णी ने सभी का आभार व्यक्त कर किया। विशेषज्ञों ने प्रेमचंद जय़ंती के अवसर पर आयोजित इस राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के आयोजन की सराहना करते हुए प्रेमचंद के योगदान को अविस्मरणीय बताया।

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