जगद्गुरु शंकराचार्य हमेशा लोगों को यही सीख देते थे कि अपने समय को अच्छे कार्यों में लगाओ। एक बार एक धनवान श्रद्धालु ने कहाः जगद्गुरु! अगर कोई व्यक्ति समय की कमी के कारण अपना समय अच्छे कार्यों में न लगा पाए तो वह क्या करे? शंकराचार्य ने उस व्यक्ति की बात सुनकर बहुत आश्चर्य के साथ कहाः समय की कमी से तुम्हारा क्या मतलब है?
मेरा परिचय आज तक ऐसे व्यक्ति से नहीं हुआ, जिसको विधाता के बनाए समय से एक भी क्षण कम या अधिक मिला हो।
इतना सुनकर धनवान श्रद्धालु चुप रह गया। जगद्गुरु ने कहाः जिसे तुम समय की कमी कह रहे हो वह वास्तव में समय का अभाव नहीं, अव्यवस्था है। यदि कोई व्यक्ति ठान ले कि उसे सदैव व्यवस्थित जीवन ही जीना है। तो उसके पास हर काम को अच्छी तरह करने के लिए पर्याप्त समय निकल आता है। जो व्यक्ति व्यवस्थित जीवन नहीं जीते वे अपने अमूल्य जीवन को भार-स्वरूप ढोते हैं। जीवन की उपलब्धि यह नहीं कि कितने वर्ष जीवित रहे, बल्कि इसमें है कि कितने समय का सदुपयोग किया। इस उत्तर से वह व्यक्ति अत्यंत प्रभावित हुआ और उसने तय किया कि वह स्वयं भी व्यवस्थित जीवन जिएगा और दूसरों को भी इस बात के लिए प्रेरित करेगा।