
उस समय महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन जोरों पर था। चंद्रशेखर भी स्वदेशी की भावना से प्रभावित हुए बगैर न रह सके। फलतः हाथ में झंडा लेकर जोशीले नारे लगाते हुए वे भी छात्रों के एक जुलूस में शामिल हो गए।
6पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और मैजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किया। मैजिस्ट्रेट ने पूछा, “नाम?”
“आजाद !”
“पिता का नाम?”
“स्वाधीन।”
मैजिस्ट्रेट को लगा कि लड़का जिद्दी है। उसका अगला सवाल था,
“और तुम्हारा घर ?”
आजाद ने उसी तल्खी से जवाब दिया, “जेलखाना।”
अब तो मैजिस्ट्रेट गुस्से से उबल पड़ा। उसने आजाद को 15 बेंतों की सजा सुनायी। जेल के सामने खुले मैदान में आजाद ने “वंदेमातरम्” और “महात्मा गांधी की जय” के उद्घोष के साथ नंगी पीठ पर बेंतों की मार सह ली और उफ तक न की।
जेल से बाहर आने पर डॉ. संपूर्णानंद ने चन्द्रशेखर को “आजाद” नाम से संबोधित किया। इसके बाद वे चंदशेखर ‘आजाद नाम से लोकप्रिय हो गए।