
एक बादशाह गुरु हरराय जी के दर्शन के लिए उनके निवास स्थान पर पहुंचा। उसने सत्संग के बाद गुरु जी से पूछा, ‘महाराज, हमारी धरती पर अनेक धर्म हुए हैं। मैं यह जानना चाहता हूं कि इनमें से किस धर्म पर विश्वास करने से हमारा कल्याण हो सकता है? किसकी बातें मानने से हमें ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती है?”
गुरु हरराय जी ने उत्तर दिया, ‘ईश्वर किसी के प्रति श्रद्धा रखने से कैसे मिल सकता है? ईश्वर तो सब जगह विद्यमान है। मनुष्य किसी भी धर्म या मत, मतांतर में विश्वास करता हुआ यदि अपने कर्म ठीक रखेगा, सद्कार्य करता रहेगा, सेवा-परोपकार के कार्यों में जुटा रहेगा, तो उस पर ईश्वर स्वतः कृपा करेंगे। वह मनुष्य स्वतः सुखी हो जाएगा।’
गुरु जी ने कुछ रुककर समझाया, ‘यह जरूरी है कि सबसे पहले मनुष्य अपने जीवन को पवित्र बनाए। पवित्र जीवन वाले को भगवान की कृपा के लिए किसी का सहारा लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती।’ बादशाह गुरु जी की बेबाक बातों से प्रभावित हाकर उनके समक्ष नतमस्तक हो गया।