motivational story : मैं जो कल था वह आज नहीं हूं

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एक बौद्ध गुरु के दर्शनों के लिए लोग उनके आश्रम में आते थे। स्वामीजी बड़ी उदारता से सबसे मिलते — बात करते और उनकी समस्याओं का समाधान करते। रोज स्वामीजी के पास दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती। स्वामीजी की प्रशंसा सुन कर एक साधारण ग्रामीण बहुत प्रभावित हुआ। वह भी स्वामीजी के दर्शनार्थ आश्रम पहुंचा।

स्वामीजी के दर्शन पाकर उनकी अलौकिक छवि से प्रभावित होकर उस व्यक्ति ने स्वामीजी से अपनी समस्या का समाधान पूछा। स्वामीजी ने विनम्र भाव से उसे निराकरण बता दिया। उपाय सुन खुशी-खुशी वह व्यक्ति प्रणाम कर घर लौट गया। घर पहुंच कर उसके मन में कुछ शंकाएं उत्पन्न हुईं। उन शंकाओं के शमन हेतु वह व्यक्ति अगले दिन फिर स्वामीजी के पास पहुंचा।

प्रणाम कर श्रद्धापूर्वक उसने फिर समस्या बताई और निदान पूछा। इस पर स्वामीजी ने फिर शांत भाव से समस्या का एक समाधान बता दिया। अब समाधान सुनकर उस व्यक्ति को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि आज का समाधान पिछले दिन के बिलकुल विपरीत था। उसने एक बार फिर पूछा तो स्वामी जी ने वही बात बताई और स्पष्ट किया कि वह भूल कर नहीं बता रहे हैं, बल्कि इस समस्या का समाधान यही है।

इस पर वह व्यक्ति बहुत क्रोधित हुआ कि कल तो आप कुछ और उपाय बता रहे थे और आज कुछ और। आप लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। इस पर स्वामीजी ने शांत भाव से मुस्कुराकर कहा कि- ‘जो मैं कल था आज मैं वह नहीं हूं। कल वाला मैं तो कल के साथ ही समाप्त हो गया, आज मैं आज का नया व्यक्ति हूं। कल परिस्थितियां और थीं और आज भित्र हैं। कल का उपाय कल की परिस्थितियों के मुताबिक था और आज का आज के वह कल का सत्य था — यह आज का सत्य है। जब मैं ही आज दूसरा हूं कल वाला नहीं फिर तुम्हारी समस्या का समाधान आज भी वही कैसे रह सकता है। जाओ आज के दिन इस परिस्थिति में तुम्हारा समाधान यही है। यह वक्तव्य सुनकर वह व्यक्ति अपनी भूल पर पछताकर स्वामीजी के चरणों पर गिर पड़ा और खुशी-खुशी अपने घर श्रद्धापूरित हृदय से वापस चला गया।