
एक वकील ने गांधी जी से कहा, ‘महात्मा जी, आपका बहुत-सा समय प्रार्थना करने में बीत जाता है। अगर आपने यह समय भी देश सेवा में लगाया होता, तो देश की सेवा और अधिक हो गई होती।’
गांधी जी गंभीर हो गए और थोड़ी देर चुप रहे। फिर बोले, ‘वकील महोदय ! आप भोजन करने में कितना समय लगाते हैं?
‘लगभग बीस-तीस मिनट’ वकील बोला।
‘भोजन करने में आपका बहुत समय बर्बाद हो जाता है। अगर इतना समय आप मुकदमों की तैयारी में लगाते तो अभी तक आपने बहुत से मुकदमों की तैयारी कर ली होती।’
‘मैं मुकदमों की तैयारी बिना भोजन कैसे कर सकता हूं?” वकील ने कहा।
वकील का उत्तर सुनकर गांधी जी ने मुस्कुराकर कहा, ‘वकील साहब! जिस प्रकार आप बिना भोजन के मुकदमे की तैयारी नहीं कर सकते, उसी प्रकार मैं भी प्रार्थना के बिना देश सेवा नहीं कर सकता। प्रार्थना मेरी आत्मा का भोजन है। इससे मेरी आत्मा को शक्ति और प्रेरणा मिलती है।’