
रामकृष्ण परमहंस से एक बार एक धनवान व्यक्ति ने पूछा, ‘मैंने सुना है मां काली आपके यहां आती है? सच सुना है आपने? अब की बार आए तो मुझसे मिलने भेज दीजिए।
धनवान व्यक्ति ने कहा। परमहंस बोले, ‘जरूर भेज दूंगा भाई, अपना पता तो बतला दो ।’ धनवान व्यक्ति ने उत्साहित होकर कहा, ’36 चौरंगी लेन….’ परमहंस ने टोकते हुए कहा, ‘ओ भाई मैं तुम्हारे घर या कार्यालय का नहीं तुम्हारा स्वयं का पता पूछ रहा हूं। तुम कौन हो? कहां से आए हो? जब तक तुम स्वयं के बारे में नहीं बताओगे तब तक ‘मां’ को मैं नहीं भेज पाऊंगा।’ यह सुनकर धनवान व्यक्ति अवाक रह गया। वास्तव में वह स्वयं का पता नहीं जानता था। ‘स्व’ से साक्षात्कार करके ही व्यक्ति उस मां की अमृतमय गोद में बैठने का अधिकारी बनता है।