
भगवान् बुद्ध ने 26 वर्ष की उम्र में जीवन में ही संसार के दुःखों से मुक्ति प्राप्त करने का उपाय ढूंढने के लिए अपने परिवार को छोड़ दिया था। 35 वर्ष की उम्र में उन्हें उपाय मिल भी गया था। उसके बाद 45 वर्ष तक उन्होंने अपने विचारों का प्रचार किया।
अपने अंत समय में, वे एक वृक्ष के नीचे लेट गए और अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे। केवल एक ही शिष्य उनके पास था, जिसका नाम था आनन्द। आनन्द भगवान बुद्ध की सेवा में लीन था। तभी उसने मन ही मन सोचा कि नजदीक के गांव में भगवान के कई शिष्य रहते हैं। अगर मैंने उन्हें भगवान के अंत समय के विषय में न बताया तो सभी शिष्य नाराज होंगे।
सूचना पाते ही गांववासी वृक्ष के पास आने लगे और भगवान बुद्ध के अंतिम दर्शन करके धन्य होते रहे। एक शिष्य अपनी जिज्ञासा लिए आया। भगवान ने उसे अपने करीब बुलाया। उस शिष्य ने हाथ जोड़कर भगवान से जीवन में ही मुक्ति पाने का मार्ग बताने का आग्रह किया।
भगवान बुद्ध बोले, ‘जीते जी जन्म-मरण से मुक्ति प्राप्त करना चाहते हो तो तीन बातें सदा याद रखो और इन पर अमल करो। पहली, यथासम्भव पापों से बचो। दूसरी, जीवन में जितने पुण्य कर्म कर सकते हो, करो। और तीसरी, अपना चित्त निर्मल रखो।’ इन अंतिम शब्दों के साथ भगवान बुद्ध ने अपने प्राण त्याग दिए।