मां : जीवन की पहली गुरु, जिससे जीवन यात्रा हुई शुरू

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”बेटा… पहले रामचरित मानस के ये चार दोहे मुझे सुना दो…. हां, और वह भी ऊंचे-लयबद्ध स्वर में… तब तक मैं तुम्हारे लिए खीर बनाती हूं… खीर तुम्हें पसंद है न…!”

मेरे नहाकर बाथरूम से बाहर निकलते ही रसोईघर में काम करती मां का स्नेह भरा आदेश हुआ। मन-ही-मन खीझ उठी मैं कि यह क्या, घंटे भर बाद मुझे स्कूल जाना है और मां रामचरित मानस पढ़ने को कह रही हैं। फिर यह सोच भीतर-ही-भीतर प्रफुल्लित हो उठी कि चलो, तब तक खीर भी बन जाएगी।

खीर वाकई मुझे बेहद पसंद थी और आज भी है, वह भी मां के हाथ की बनी। वैसे तो, मां साक्षात अन्नपूर्णा थीं। जो भी बनातीं, बेहद सुस्वादु और संतुष्टिप्रद। सो, मां की बनी खीर खाने के लोभ में बैठ गई, बिना कोई प्रतिक्रिया दिए रामचरित मानस बांचने। बचपन में स्वर कोमल-कंठी हुआ ही करता है, वह भी खासकर लड़कियों का। लिहाजा, ऊंचे-लयबद्ध स्वर में मानस के दोहे-चौपाइयों का मेरा पठन चलता रहा। बीच-बीच में मां की सराह और शब्दों का उच्चारण सही न होने पर सलाह भी आती रहती, क्योंकि वे रसोईघर से ही मेरा मानस-पाठ कान दे कर सुन रही होतीं।

मां द्वारा आरंभ किया मानस-पाठ का यह सत्र धीरे-धीरे मेरा नित्यकर्म बन गया। बच्चे को मिठाई खूब प्रिय होती है, सो कभी खीर, कभी गाजर का हलुआ, शकरपारे, गुझिया आदि का प्रलोभन देकर मां ने एक तरह से मेरे नित्यकर्म में मानस उड़ेल दिया। आगे चल कर समझ में आया कि इसके पीछे मां की मंशा मेरी भलाई की ही थी। उनके मुझमें मानस उड़ेलने से ही मैं वाकई मूर्त रूप से मनुष्य बन सकी।

हम 7 भाई-बहन थे। लेकिन मां मुझे भी बेटा मानती थीं और बेटा कह कर पुकारा करतीं भी। मैं थी कॉन्वेंट स्कूल की छात्रा। सो, हिंदीभाषी परिवार की होते हुए भी मेरी हिंदी उतनी ठीक नहीं थी, जितनी होनी चाहिए। मां प्रायः कहा करती थीं कि हमारी किसी भी तरह की तरक्की की शुरुआत विचार से होती है और विचारधारा की तरक्की अपनी मातृभाषा से, इसलिए मातृभाषा-कौशल बहुत जरूरी है। सो, मातृभाषा-कौशल और भारतीयता-नारीत्व-मनुष्यता का आदर्शवाद जगाने के लिए मां ने मुझमें मानस-पाठ की नींव रखी, जिससे मेरा अब तक का समूचा जीवन पूरी तरह सजा-संवरा और निखरा।

मेरे ही नहीं, बल्कि हम सभी भाई-बहनों के चतुर्दिक विकास की जननी और जनक मेरी मां ही हैं। पिताजी 75 साल की उम्र में वर्ष 2003 में चल बसे। तब से मां ही पिता और मां दोनों का दुलार हम पर लुटाकर हमारा सर्वोच्च मार्गदर्शन करते हुए हमारी दुनिया सुखदायी बनाती रहीं। मां का मूलमंत्र था – जीवन में कभी हार मत मानो…मेहनत करो, क्योंकि मेहनत ही सफलता की सीढ़ी है…मेहनत ही हाथ की लकीरें बदल कर तक़दीर की तस्वीर बदल देती है। मां का दिया यह मूलमंत्र हम सभी भाई-बहनों के लिए बेहद प्रेरक रहा और इसी ने हमारे जीवन में संजीवनी का काम किया। जीवन में कई बार मुश्किलें आईं, पर मां के इसी मूलमंत्र ने हर बार संबल दिया, सो हार नहीं मानी और संकट से जम कर संघर्ष किया, मेहनत की। अंततः नतीजा, पूरी तरह पक्ष में रहा, कामयाबी ने कदम चूमे।
ऐसा कतई नहीं था कि मां महज उपदेश ही करती थी। वह जो कहती थीं, उसे खुद भी जीती थीं। उनके सारे बोल अनुभव और कर्तव्य से लबालब हुआ करते थे। वे स्वयं रोजाना रामचरित मानस का पाठ किया करती थीं। तभी तो मानस की गुणवत्ता उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में रची-बसी थी। मानस का सुंदरकांड और हनुमान चालीसा उन्हें पूरी तरह कंठस्थ था। नित्य पाठ करते-करते उनके लिए यह इतना सहज-सरल हो गया था कि सुंदरकांड वे महज घंटे भर में पूरा कर लिया करतीं। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा पाठ समेत मंदिर जाने उनका नित्यकर्म आखिर तक बना रहा। 
यह बताते हुए आंखों की गंगा-जमुना थमती नहीं कि हमारी परम-मार्गदर्शक-जीवनदायिनी मां अब हमारे बीच नहीं रहीं। 89 साल की उम्र में 12 अक्टूबर, 2019 को वह दिव्ययात्रा पर अनंत में चली गईं। फरवरी, 2020 में 15 तारीख को हम उनका 90 वां जन्मदिन उल्लासपूर्ण तरीके से मनाने की योजना में थे, पर उन्होंने हमें यह सुअवसर दिया ही नहीं। खैर, जो भी दिया उन्होंने, बहुत कुछ दिया…यह जीवन दिया और जीवन जीने का उच्चतम फलसफा…यही क्या कम है ! मां के इस ऋण से हम अंतिम सांस तक मुक्त नहीं हो सकते।          
वाकई, मां वह पहली गुरु होती है, जिससे अपनी दुनिया शुरू होती है। मां वह गिनती है, जो अनगिनत है…वह अरबों आकाशगंगाओं से भी विशाल-हृदय, महान और अनंत सूर्यों से भी तेजस्वी है। ईश्वर से साक्षात्कार जरूर गुरु कराता है, पर मां वह गुरु है, जो मां है और ईश्वर भी। 

सुमन आर अग्रवाल
सुप्रसिद्ध वूमंस राइट्स एक्टिविस्ट, सदस्य- अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी महासचिव – महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी, राष्ट्रीय सचिव – अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन, संस्थापक-अध्यक्ष: मारवाड़ीज इन ठाणे वेलफेयर/  सुप्रयास फाउंडेशन तथा समाजोत्थान के लिए कार्यरत अन्य कई संगठनों में सक्रिय।