जीवन ऊर्जा: क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है

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भगत सिंह एक महान भारतीय क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 28 सितंबर 1907 में हुआ था। उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत के प्रतिशोध में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या में भाग लिया था। बाद में उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा में एक बड़े पैमाने पर प्रतीकात्मक बमबारी और जेल में भूख हड़ताल में भाग लिया था। देश विदेश के क्रांतिकारियों के विचारों से प्रभावित 1930 के दशक में भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ने में मुख्य भूमिका निभाई तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अहिंसक लेकिन अंततः भारत की स्वतंत्रता के लिए सफल अभियान के भीतर तत्काल आत्मनिरीक्षण को प्रेरित किया। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 में फांसी दी गई थी।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-कातिल में है। जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा, तथा उसे चुनौती देनी होगी। बम और पिस्तौल क्रांति नहीं करते। क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है। वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे। मेरा धर्म देश की सेवा करना है। जन संघर्ष के लिए, अहिंसा आवश्यक हैं। देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं। क्रांति की तलवार तो सिर्फ विचारों की शान से तेज होती है। मैं उस सर्वशक्तिमान सर्वोच्च ईश्वर के अस्तित्व से इनकार करता हूं। अपने दुश्मन से बहस करने के लिए उसका अभ्यास करना बहुत जरुरी है। निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार, ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं। प्यार हमेशा आदमी के चरित्र को ऊपर उठाता है, यह कभी उसे कम नहीं करता है। मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है। ज़रूरी नहीं है कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं है। राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है। क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।