जीवन ऊर्जा: जिसे अपने देश से प्रेम नहीं, उसका ह्रदय, ह्रदय नहीं पत्थर है

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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी और मैथिली भाषा के कवि, निबंधकार, स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त थे। उनका जन्म 23 सितंबर 1908 में हुआ था। उनकी कविता ने वीर रस को उजागर किया था। उनकी प्रेरक देशभक्ति रचनाओं के कारण उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ और ‘युग-चरण’ के रूप में सम्मानित किया गया। दिनकर तीन बार राज्य सभा के लिए चुने गए थे और वे 3 अप्रैल 1952 से 26 जनवरी 1964 तक इस सदन के सदस्य भी रह चुके हैं। वर्ष 1959 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। दिनकर ने अपनी आखरी सांस 24 अप्रैल 1974 में ली थी।

इच्छाओं का दामन छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो। सतत चिन्ताशील व्यक्ति का कोई मित्र नहीं बनता। जैसे सभी नदियां समुद्र में मिलती हैं उसी प्रकार सभी गुण अंतत: स्वार्थ में विलीन हो जाते है। जिस काम से आत्मा सन्तुष्ट रहें उसी से चेतना भी संतुष्ट रहती है। दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकते। आपकी उन्नति तो तब ही होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे। सम्पूर्ण इंसान जाति में भेद नहीं करता। स्वार्थ हर तरह की भाषा बोलता है, हर तरह की भूमिका अदा करता है, यहां तक कि नि:स्वार्थ की भाषा भी नहीं छोड़ता। सूर्यास्त होने तक मत रुको। चीजे तुम्हें त्यागने लगें, उससे पहले तुम्ही उन्हें त्याग दो। लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है। बल्कि वे हमारी निंदा करें, यह कम बुरा है। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। जिस काम से आत्मा सन्तुष्ट रहें उसी से चेतना भी संतुष्ट रहती है। आजादी रोटी नहीं, मगर दोनों में कोई वैर नहीं। पर कहींं भूख बेताब हुई, तो आजादी की खैर नहीं। अभिनंदन लेने से मना करना, उसे दोबारा मांगने की तैयारी है। जिस इंसान के ह्रदय में भावना न हो, जिसे अपने देश से प्रेम नहीं, उसका ह्रदय ह्रदय नहीं पत्थर है।