रॉबर्ट बर्न्स (1759-1796) का पत्र एग्निस के नाम

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अंग्रेजी के जाने-माने कवि रॉबर्ट बर्न्स की जिंदगी में एग्निस मैक्लेहोज का प्रवेश तब हुआ, जब उसका पति उसका परित्याग कर चुका था। दोनों के बीच जल्द ही ‘सिल्वेंडर’ और ‘क्लेरिंडा’ के नामों से पत्र-व्यवहार की एक श्रृंखला शुरू हो गई। ये संबंध मात्र अंतरंग मैत्री तक ही सीमित थे या इनमें प्रेम का भी कुछ हस्तक्षेप था, यह निष्कर्ष पाठक खुद निकालें। यूं एग्निस अपने पत्रों में अक्सर लिखती रहीं कि वह इस गर्मजोशी भरी, संवेदनशील, मित्रता को बनाए रखना चाहती हैं। दो वर्ष बाद बर्न्स की जिंदगी में जीन आर्मर के प्रवेश और उससे उसके विवाह के बाद उसके और एग्निस के बीच पत्रों का यह सिलसिला ख़त्म हो गया।

तुम पहले क्यों नहीं मिली?

माय डियर क्लेरिंडा, शुक्रवार शाम,
21 दिसम्बर, 1787

तुम नाखुश क्यों हो? और बहुत सारे लोग, जो इस योग्य भी नहीं है कि मनुष्यों के श्रेष्ठ वर्ग में शामिल किए जा सकें, अपनी हर इच्छा पूरी करने में कैसे सफल हो जाते हैं? तुम्हारा हृदय दूसरों के लिए उदारता से भरा हुआ है – फिर खुद तुम्हें खुशियों का अधिकार क्यों नहीं है? तुम्हारा हृदय इतनी भव्यता के साथ निर्मित किया गया है कि उसे प्रेम का उत्कृष्ट आनंद प्राप्त करने का अधिकार है – फिर उस हृदय के साथ यह अन्याय क्यों? ओह क्लेरिंडा ! क्या हम लोग किसी ऐसे प्रदेश में नहीं मिल सकते – किसी अब तक अनजाने और अनखोजे प्रदेश में – जहां उदार हृदयों को उनके योग्य ऊंचे-से-ऊंचे आनंद और विलास का अधिकार हो? जहां मर्यादाओं की दीवारें आनंद की स्वतंत्र हवाओं का रास्ता न रोकें? अगर यह संभव नहीं है, तो फिर जीवन का अर्थ ही क्या है? मैं अप्रसन्नता के उन अधिकांश क्षणों का अधिकारी हूं, जो मेरे मन और मस्तिष्क पर सवार रहते हैं, क्योंकि वे मेरे श्रम का पुरस्कार होते है, लेकिन वह कौन-सा दुर्भावनाग्रस्त दानव है, जिसने तुम्हारे मसूम और पवित्र हृदय का आत्मविश्वास छीन लिया है और तुम्हारी जिंदगी का प्याला उन दुखों से भर दिया है, जिनकी तुम कई अधिकारिणी नहीं हो?

मुझे बताना कि तुम कितने दिनों के लिए शहर से बाहर रहोगी। मैं तब तक हर गुजरने वाले घंटे को गिनता रहूंगा जब तक कि तुम मुझे अपने वापस लौटने की सूचना नहीं देतीं। कमबख्त मर्यादाएं तुम्हें जाने से पहले मुझसे मिलने से रोक रही हैं। मैं भी जैसे ही चलने योग्य होऊंगा, एडिनबर्ग से कहीं और निकल जाऊंगा। ईश्वर, मैंने उन दुखों को देखने के लिए क्यों जन्म लिया, जिन्हें मैं दूर नहीं कर सकता? और मैं उन मित्रों से मिलने को क्यों बाध्य हूं, जो मुझे किसी प्रकार का आनंद नहीं देते? कई बार मैं अतीत की तरफ मुड़कर देखता हूं, तो बड़े अफसोस और पीडा के साथ यही सोचता हूं कि तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिली?

पिछली पूरी सर्दियां – ये पिछले तीन महीने – मैं इस वार्तालाप के आनंद से वंचित रहा हूं। यूं शायद यह मेरे मन की शांति के लिए ठीक ही था। तुम देख ही चुकी हो कि मैं किसी किस्म की तिकड़मबाजी से बिल्कुल दूर हूं या शायद इसमें अक्षम हूं। मुझे चालबाजियों से वितृष्णा होती है। मुझमें न तो वह ठंडापन है और न ही वह चालाकी, जो इसके लिए जरूरी होते हैं। हो सकता है कि मैं किसी किले पर तूफान की तरह टूट पडूं, पर मैं इसकी घेराबंदी नहीं कर सकता।

लो, फिर कोई आ धमका है! पत्र बंद करता हूं।

अच्छा, माय डियर क्लेरिंडा!

सिल्वेंडर