Kuala Lumpur: शांति निर्माण में शरणार्थियों की भागीदारी क्यों अहम है?

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Kuala Lumpur

कुआलालंपुर: (Kuala Lumpur) शांति निर्माण (peace building) में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता दशकों से पहचानी जाती रही है, खासतौर से 2000 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा शुरू की गयी महिला, शांति और सुरक्षा रूपरेखा के जरिए। हालांकि, यह शांति निर्माण में शरणार्थी महिलाओं की भूमिका को पहचानने में नाकाम रही।

शांतिरक्षा नीति निर्माण में शरणार्थियों की बमुश्किल ही कोई बात की गयी है और खासतौर से शरणार्थी महिलाएं इससे बाहर हैं जो आमतौर पर लिंग के कारण दोहरे भेदभाव का सामना करती हैं।

म्यांमा की शरणार्थी महिलाएं कई वर्षों से शांति निर्माण में सक्रिय रही हैं। ‘कारेन वुमेन ऑर्गेनाइजेशन’ की नॉ के’न्यॉ पॉ ने व्हाइट हाउस में पूर्व प्रथम महिला लॉरा बुश से मुलाकात की और नॉ जोया फान को विश्व आर्थिक मंच का युवा वैश्विक नेता चुना गया।

म्यांमा की अन्य शरणार्थी महिलाएं भी राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में अहम नेतृत्व पदों पर रही हैं। इन महिलाओं तथा कई हजारों और महिलाओं ने म्यांमा में शांति के लिए काम करने के वास्ते अपना समय और जीवन समर्पित कर दिया।

थाइलैंड में शरणार्थी महिलाओं ने म्यांमा में ही विस्थापित लोगों की मदद के लिए लगातार काम किया है। शिविरों तथा शहरों में शरणार्थी महिलाएं खासतौर से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के मुद्दों पर अपने समुदायों का समर्थन करती हैं।

शरणार्थी महिलाएं म्यांमा में सेवा आपूर्ति, मानवीय सहायता और शांति के एक औजार के तौर पर अहम हैं। हालांकि, इस अनुभव को अभी तक इतना महत्व नहीं दिया गया है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय 2011 से 2021 तक यह मानता था कि म्यांमा राजनीतिक बदलाव के दौर में है और यह विश्वास 2015 से 2020 के बीच बढ़ गया जब सैन्य जुंटा ने नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की अगुवाई में एक निर्वाचित संसद से सत्ता छीन ली।

इन वर्षों के दौरान म्यांमा में शांति निर्माण एक बड़ा कारोबार था। ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, यूरोपीय संघ, फिनलैंड, इटली, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका ने 10 करोड़ डॉलर की संयुक्त शांति निधि स्थापित की।

ज्यादातर शांति निर्माण परियोजनाओं में उन शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया जो म्यांमा से बाहर रहते हैं और जिन्होंने थाईलैंड, मलेशिया और भारत समेत अन्य देशों में शरण मांगी है। इसके बजाए शरणार्थियों पर म्यांमा लौटने का अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया गया। शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजने की चर्चा में शरणार्थी महिलाओं समेत उन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए।

ऐसी चर्चा को अभी शरणार्थी भेजने वाले देशों, शरणार्थियों को पनाह देने वाले देशों और यूएनएचआरसी के बीच त्रिपक्षीय मुद्दा माना जाता है जबकि यह चार पक्षीय वार्ता होनी चाहिए जिसमें शरणार्थी प्रतिनिधि भी शामिल होने चाहिए और शरणार्थी महिलाएं इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होनी चाहिए।