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ये दिया कैसे जलता रह गया

आप को देख कर देखता रह गया
क्या कहुँ और कहने को क्या रह गया

आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और मैं था के सच बोलता रह गया

आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे
ये दिया कैसे जलता रह गया

वसीम बरेलवी
प्रसिद्ध उर्दू शायर

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