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holi special : लाख का बना जयपुर का मशहूर गुलाल गोटा: आज भी राजसी परिवार करते है इस्तेमाल

जयपुर:(holi special) राजस्थान में फागुन की महक आने के साथ ही होली का खुमार भी छाने लगा है। लोग होली की तैयारियों में जुट गए है। साथ ही बाजार में भी होली की रौनक नजर आने लगी है। रंगों के त्योहार में खास जगह रखता था जयपुर का गुलाल गोटा। पांच ग्राम लाख से बनने वाला यह गोटा गुलाल से भरा होता था। कहा जाता है कि आमेर के महाराजा कभी हाथी पर सवार होकर जब प्रजा के बीच होली खेलने निकलते थे तो इन्हीं गुलाल गोटों से वे जनता पर रंग बरसाते थे।

चार सौ सालों से गुलाल गोटा बनाने का काम जयपुर का एक मुस्लिम परिवार कर रहा है। इनकी कई पीढ़ियां इस काम को करते चले आ रही है। अब राजा-महाराज तो नहीं रहे, लेकिन राजस्थान के कई पूर्व राजसी परिवार आज भी गुलाल गोटे का इस्तेमाल करते हैं। इन्हीं लोगों की वजह से जयपुर के साथ देश के अन्य हिस्सों में भी ये गुलाल गोटे रंगोत्सव के शाही अंदाज को जिंदा रखे हुए हैं। होली खेलने का यह अंदाज महज पांच ग्राम लाख और बीस से तीस ग्राम गुलाल के साथ उत्साह को दोगुना कर देता है। जयपुर के होली सेलिब्रेशन में ये गुलाल गोटे देसी-विदेशी सैलानियों के बीच हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहे है।

जयपुर के कई परिवार अपनी खास कारीगरी से गुलाल गोटे तैयार करते हैं। ये गुलाल गोटे पूरी तरह से लाख से बने होते हैं, एक गोटे में महज 5 ग्राम लाख का इस्तेमाल होती है। लाख को पिघला कर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती हैं फिर गोलियों में हवा भरी(फूंकनी के जरिए) जाती है। गुब्बारे की तरह फुलाते हुए इसे रंग भरने के लिए तैयार किया जाता है। जब गोटा तैयार हो जाता है तो इसमें 20 से 30 ग्राम तक गुलाल भरी जाती है।

यह गुलाल गोटे रंग-बिरंगे रगों में बेहद आकर्षक लगते हैं। इनके साथ होली खेलने वाले न सिर्फ रंगों से बल्कि खुशबू से भी नहा जाता है। आमेर के राजा ने इन्हें अपनी प्रजा के साथ होली खेलने के लिए प्रोत्साहन दिया और मनिहारों को जयपुर में बसाया था। वर्तमान में पिंक सिटी के मनिहारों के रास्ते में ही ये गुलाल-गोटे बनाए जाते हैं। आज भी कुछ परिवार अपने पुश्तैनी गुलाल गोटे बनाने के काम को जारी रखे हुए हैं।

जयपुर में गुलाल गोटा बनाने और उनका कारोबार करने वाले अधिकांश लोग मुस्लिम परिवार से आते हैं। इन कारीगरों का दावा है कि लगभग सैकड़ों साल पहले उनके पूर्वजों को जयपुर में बसाया था। उनके पूर्वजों के बनाए गुलाल गोटे से ही राजपरिवार होली खेला करता था। आज भी जयपुर में गुलाल गोटा बनाना और बेचने का काम अधिकांश मुस्लिम परिवार के सदस्य ही करते हैं।

राजा और प्रजा के बीच होली खेलने का है प्रतीक

गुलाल गोटा मूल रूप से राजा और प्रजा के बीच होली खेलने का प्रतीक है। दरअसल, जब होली के दिन राजा-महाराजा अपनी प्रजा से संवाद करने, उनसे मिलने किलों से बाहर आते थे, तब उनके लिए यह संभव नहीं था कि बाहर राजा का इंतजार कर रही हजारों की भीड़ में हर एक के साथ होली खेली जाए। इसलिए उस समय राजा और प्रजा गुलाल गोटा बनाकर एक दूसरे पर फेंका करती थी। इससे प्रजा अपने राजा के साथ होली भी खेल ली। समय के साथ धीरे-धीरे बाद में यह जयपुर की पहचान बन गया। बताया जाता है कि सवाई जयसिंह, सवाई मानसिंह आदि गुलाल गोटे से ही राजपरिवार में और जनता के साथ होली खेला करते थे।

वर्षों से गुलाल गोटा तैयार कर रहे मुस्लिम परिवार के लोग बताते हैं कि होली खेलने के सबसे शानदार गुलाल गोटा हैं जो बिल्कुल हल्का होता है। जिसे होली खेलते समय किसी पर फेंक कर मारा जाता है तब यह फूटता है और इसमें से कलर निकलता है। जयपुर में होली से एक महीने से पहले ही गुलाल गोटा बनना तैयार हो जाता है और सीजन में सभी गुलाल गोटा तैयार करने वाले कारीगर ठीक ठाक पैसा कमा लेते हैं। कारीगरों के अनुसार छह गोटे की पैकिंग का मूल्य 150 रुपये रखा जाता है, जो आज की महंगाई को देखते हुए वाजिब दाम लगते हैं।

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