गुरु का पत्र अपने शिष्य को

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आत्मा की आवाज सुनो

प्रिय शिष्य,
सदैव निज आनंद में मस्त रहो। संसार के मजे तो आने-जाने वाले हैं, पर तुम्हें तो शाश्वत सुख का पता चल गया है, उसी के लिए पुरुषार्थ करते चलो। यदि दाएं हाथ में पुरुषार्थ है, तो बाएं हाथ में सफलता जरूर मिलेगी। अपनी डोर गुरु के हाथ में सौपकर तो देखो, वो अंत तक तुम्हें गिरने नहीं देगा। “गुरु तुम्हारे सारे राह के कंकड़ को सितारों में तब्दील कर देगा। एक क़दम बढ़ाओगे वो सौ क़दम तक साथ देगा, भरोसा करने पर वो भाग्य की लकीरों को भी बदल देगा।’

इस झूठे संसार से जागकर हृदय की आंखों से अपनी जिंदगी को देखो। जिंदगी एक मखौल भर कोरी कल्पना लगेगी। गुरु तुम्हारे लक्ष्य को आकाश की ऊंचाई तक ले जाएगा। बीज भी मिट्टी के आश्रय से वृक्ष बनता है। सोना सुनार के हाथों में पहुंचकर सुंदर जेवर बन जाता है, वैसे ही तुम भी गुरु संग में तपस्या में तपकर एक सुंदर फूल बन जाओगे, जिसकी सुगंध लेने लोग स्वयं तुम्हारे पास चलकर आएंगे। दूसरों के गुण-दोष, अच्छा-बुरा, अपना-पराया देखकर नफ़रत में गिर भी पड़ो, तो फ़ौरन उठ जाओ, चल पड़ो सच की डगर पर गिरना ही, तो चढ़ने की निशानी है, गिरते हैं शाहे सवार मैदाने जंग में, वो क्या गिरेंगे जो चलते ही घुटनों के बल पर हैं।”

धर्म के नाम पर हम आपस में ही क्यों रूठे हुए हैं, निर्भय होकर जीओ और जीने दो। धीरे-धीरे कछुए की तरह ही सही मंजिल तक पहुंच ही जाओगे। कांटों के बिना भला फूल का क्या मूल्य तुम अपने प्रति सच्चे व ईमानदार बनो यही तुम्हारा धर्म है। अपने अंदर की आत्मा की आवाज सुनो। अपने में दृढ विश्वास रखो। अपनी मुरादों को दिल की डिबिया में क़ाबू रखो और दांतों से दांत भींचकर भी पुरुषार्थ करते जाओ। सदैव मुस्कुराते हुए भगवान की दी हुई इन अमूल्य नियामतों के लिए शुक्रिया अदा करते रहो। गुरु को अपनी सारी कमियां बता दो, स्वयं अपने बोझ मत बनो। प्रेम से अपनी जीवन बगिया को लहलहाते हुए नम्रता तक ले जाओ। तुम्हारे सारे संकल्पों को पूरा करना मेरा ही काम है, जो बीत गया है और जो आने वाला है उसके बारे में सोचना छोड़कर आज ही में रहो। हर हाल में आज के आनंद में रहो और आज के आसमान को मुट्ठी में भर लो ।

जब गुरु का यह पत्र शिष्य ने पढ़ा तो बरबस ही उसके मुंह से निकल पड़ा… ‘जिंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है गुरु, जन्नत की सीढ़ियों का वरदान है मेरा गुरु।

तुम्हारा
गुरु