EDITOR : यह कैसा रूप है मीडिया का

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आज ज्यादातर अखबार और न्यूज़ चैनल यह चला रहे हैं कि फिल्मों में नाच-गाकर और अपनी अदाकारी से लोगों का मनोरंजन कर अपनी आजीविका चलाने वाली एक बड़बोली अभिनेत्री ने देश की आजादी को लेकर क्या कहा..? हर कोई उनके बयान का विश्लेषण कर रहा है। कोई पक्ष में कोई विपक्ष में.. ! मीडिया का अटेंशन देखने का बाद काम न मिलने से घर में बैठे हुए एक और कला दिखा कर पेट भरने वाले ने देश की आजादी पर बोलना शुरू किया है।
पूरे देश में इन दोनों की चर्चाएं जारी है। कुछ इनका समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि इनका पतन हुआ है, इसलिए ये इतनी बेहूदा बात कर रहे हैं। समर्थकों का मानना है कि सच बोलने की हिम्मत है यह…हर तरफ सवाल यह है कि ये गलत हैं या सही हैं। पर वास्तविक सवाल यह कतई नहीं है! सवाल यह है कि भारतीय मीडिया का किस तरह का पतन हो गया है कि अपनी कला से लोगों को प्रभावित करने के लिए बदन दिखा कर पैसे कमाने वाली अभिनेत्री से देश के बारे में सवाल पूछ रही है।
खुद को निष्पक्ष और परिपक्व मीडिया कहने वाले क्या इतनी मामूली बात नहीं जानते कि किससे किस तरह के सवाल पूछने चाहिए..?
सच तो यह है कि भारत के बहुत से मीडिया संस्थानों को अपनी खुद की गरिमा का कोई भान ही नहीं रहा… वे बस सनसनी पैदा कर रहे हैं… जिस संपादक को अभिनेत्री का बयान बड़ा लग रहा है वह सड़क छाप, बिना सम्पादकीय गुणों का 2 कौड़ी का सम्पादक है… वह नहीं जानता कि पत्रकारिता एक पीढ़ी को दिशा देती है। उसे अमेरिकी पत्रकारिता से सीखने की जरूरत है जब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प का लाइव बयान यह कहते हुए रोक दिया गया कि राष्ट्रपति झूठ बोल रहे हैं इससे राष्ट्र का नुकसान होगा। हमें सीखना होगा कि पत्रकारिता सनसनी भरे बयान रिकॉर्ड कर के लोगों पर फेंक देने से बहुत ज़्यादा कुछ है। यह बड़ी जिम्मेदारी है, बाकी पत्रकारिता को सोचना होगा कि वह आनेवाली पीढियों को क्या दे रही है…