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मुसकुरा दी थीं क्या तुम प्राण

मुसकुरा दी थीं क्या तुम, प्राण!
मुसकुरा दी थीं आज विहान?

आज गृह वन उपवन के पास
लोटता राशि राशि हिम-हास,
खिल उठी आँगन में अवदात
कुन्द कलियों की कोमल-प्रात!

मुसकुरा दी थीं, बोलो प्राण!
मुसकुरा दी थीं तुम अनजान?

आज छाया चहुँदिशि चुपचाप
मृदुल मुकुलों का मौनालाप,
रुपहली कलियों से कुछ लाल,
लद गयी पुलकित पीपल डाल
और वह पिक की मर्म-पुकार
प्रिये ! झर-झर पड़ती साभार,
लाज से गड़ी न जाओ, प्राण!
मुसकुरा दीं क्या आज विहान !

कवि: सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था।

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