धमतरी : मराठा समाज की महिलाओं ने 21 जून को वट पूर्णिमा का पर्व उल्लास के साथ मनाया। इस अवसर पर इतवारी बाजार स्थित बरगद पेड़ के नीचे पूजन किया। सुहागिनों ने सोलह शृंगार किया। बरगद के पेड़ के नीचे सुबह एकत्रित हुईं। वट वृक्ष में कच्चा धागा लपेटकर पति के दीर्घायु व परिवार के सुख समृद्धि की कामना की।
वट पूर्णिमा पर महिलाओं ने विधि-विधान से पूजन किया। बरगद पेड़ के सात, 11 और 21 परिक्रमा करते हुए कच्चा धागा बांधा। पूजन के बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाया गया। शृंगार देकर बड़ों से आशीर्वाद लिया। समूह में बैठकर सत्यवान और सावित्री की कथा सुनी गई। घर लौटकर पति के पूजन के बाद उपवास तोड़ा। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया। कुछ महिलाओं ने घर पर भी पूजन किया।
पर्यावरण संरक्षण भी है एक उद्देश्य
यह परंपरा पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रेरित करती है। विशाल बरगद वृक्ष पर सभी तरह के पक्षी, जीव जंतु अपना आशियाना बनाते हैं। बरगद का पूजन करना यानी सभी का सम्मान करते हुए अपने परिवार को सुखी करना है। पर्यावरण में मौजूद सभी घटकों को बगैर परेशान किए ही मानव समाज सुखी रह सकता है।
बरगद का पेड़ देववृक्ष माना जाता है
महिलाओं ने बताया कि हिंदू शास्त्रों के अनुसार वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ देव का वृक्ष माना गया है। देवी सावित्री भी इसी वृक्ष में निवास करती हैं। मान्यता के अनुसार वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। तब से ये व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। इस दिन विवाहित अखंड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। मराठा समाज की साधना रणसिंह ने बताया कि महाराष्ट्र पंचांग के अनुसार वट पूर्णिमा परज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत पूजन करने की परंपरा है। मराठा समाज की महिलाएं महाराष्ट्र पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत पूर्णिमा पर मनाती आ रही है। बरगद पेड़ के पूजन-अर्चना के बाद सुहागिनों के आंचल में आम, गेंहू और शृंगार डाला। एक-दूसरे का तिलककर बड़ों का आशीर्वाद लिया गया। इस अवसर पर सोनिया रणसिंह, मोनिता रणसिंह, प्रणिता चौहान सहित अन्य मौजूद रहीं।