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Sunday, June 4, 2023
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Dhamtari: रीपा केंद्र में इलेक्ट्रिक मशीन से हो रही कपड़ा सिलाई, हाथकरघा से बना रही कपड़ा

धमतरी:(Dhamtari) प्रदेश में गोधन न्याय योजना के तहत गौठानों में गोबर खरीद व अन्य गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। गौठानों व समूहों को और अधिक सशक्त व समर्थ बनाने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क रीपा संचालित किए जा रहे हैं जहां पर समूह की महिलाएं खुद के हुनर को तराशकर आर्थिक स्वावलंबन की ओर तेजी से अग्रसर हो रही हैं।

धमतरी जिला के ग्राम अछोटा के हाथकरघा प्रशिक्षण के प्रभारी दिलीप देवांगन ने शनिवार को बताया कि मुख्यमंत्री की मंशानुसार बुनकरों की प्राचीन हथकरघा पद्धति को प्रोत्साहित करने महिलाओं को हथकरघा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सामूहिक रूप से प्रशिक्षण देने के लिए रीपा केंद्र सबसे उपयुक्त जगह साबित हुआ है, जहां पर महिलाएं बेहतर ढंग से प्रशिक्षण ले रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि यहां तैयार किए गए सूती वस्त्र की बाजार में अच्छी मांग है तथा इससे अब तक ढाई लाख रुपये तक की आय समूह को प्राप्त हो चुकी है।

मां अंगारमोती बुनकर सहकारी समिति अछोटा की अध्यक्ष लक्ष्मी देवांगन ने बताया कि रीपा केंद्र में प्रशिक्षण दिया जाना बेहतर विकल्प साबित हुआ है, क्योंकि आवश्यक सामानों सामानों की उपलब्धता, ताना-बाना और धागों के बंडल का रखरखाव काफी आसान हो गया है। रीपा केंद्र अछोटा में समूह की महिलाएं सिलाई का भी प्रशिक्षण तन्मयता से ले रही हैं और अपना कौशल विकसित करने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं।

वहां उज्ज्वल ग्राम संगठन अछोटा समूह की महिला जयंती नगारची व भुनेश्वरी ने बताया कि इससे पहले मैनुअल मशीन से दिनभर में 10-15 कपड़ों की सिलाई हो पाती थी, लेकिन इलेक्ट्रिक सिलाई मशीन से एक ही दिन में 30-40 नग ट्यूनिक, शर्ट आदि कपड़ों की सिलाई आसानी से हो जाती है। यह भी बताया गया कि समूह ने अब तक लगभग 09 हजार नग कपड़े तैयार किया जा चुका है।

जिससे लगभग 50 हजार रुपये की आमदनी हुई है। इसके अलावा रीपा केन्द्र को अत्याधुनिक तकनीकीयुक्त बनाते हुए फ्री वाईफाई सेवा प्रदाय की जा रही है। साथ ही गढ़कलेवा का भी संचालन समूहों के माध्यम से किया जा रहा है, जहां पर विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्वाद लिया जा सकता है। इस प्रकार अछोटा का रीपा सेंटर ग्राम्य अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूत, स्वावलंबी और आर्थिक रूप से संबल बनाने में मील का पत्थर साबित हो रहा है।

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