
मुनीर अहमद मोमिन
ऐतिहासिक दस्तावेज साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हजरत मोहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैगम्बरे इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबेाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहां तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश (अल्लाह का कोई साझीदार नहीं) पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे। क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यकीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे- ‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं, जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है। जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े।
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पैगम्बरे-इस्लाम की जीवन गाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे। उन्होंने आपके पैगाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैगम्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैगम्बर मोहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्री और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाजी और फ्राड की जरा सी झलक भी देख पाते या आपमें धन-लोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं।इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और खतरों को वीरता और साहस के साथ झेला। आप पर ईमान लाए। आपका विश्वास किया। आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देने वाली यातनाओं के झेलने के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक वेदना को शांतिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की।
मोहम्मद यानि महानतम व्यक्तित्व

उदाहरण स्वरूप अगर महानता इस पर निर्भर करती है कि किसी ऐसी जाति का सुधार किया जाए जो सर्वथा बर्बरता और असभ्यता में ग्रस्त हो और नैतिक दृष्टि से वह अत्यन्त अन्धकार में डूबी हुई हो तो वह शक्तिशाली व्यक्ति हजरत मोहम्मद हैं। जिन्होंने अत्यन्त गहरी खाई में गिरी हुई कौम को ऊंचा उठाया। उसे सभ्यता से सुसज्जित करके कुछ से कुछ कर दिया। उन्होने उसे दुनिया में ज्ञान और सभ्यता का प्रकाश फैलाने वाला बना दिया। इस तरह आपका महान होना पूर्ण रूप से सिद्ध होता है।
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यदि महानता इसमें है कि किसी समाज के परस्पर विरोधी और बिखरे हुए तत्वों को भाईचारे और दया भाव के सूत्रों में बाँध दिया जाए तो मरुस्थल में जन्मे पैगम्बर निःसंदेह इस विशिष्टता और प्रतिष्ठा के पात्र हैं।यदि महानता उन लोगों का सुधार करने में है जो अंधविश्वासों तथा अनेक प्रकार की हानिकारक प्रथाओं और आदतों में ग्रस्त हों तो पैगम्बरे-इस्लाम ने लाखों लोगों को (धर्म के नाम पर फैले) अंध विश्वासों और बेबुनियाद भय से मुक्त किया। अगर महानता उच्च आचरण पर आधारित होती है तो शत्रुओं और मित्रों दोनों ने मोहम्मद साहब को ‘‘अल-अमीन’’ और ‘‘अस-सादिक’’ अर्थात ‘विश्वसनीय’ और ‘सत्यवादी’ स्वीकार किया है। अगर एक विजेता महानता का पात्र है तो आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अनाथ और असहाय और साधारण व्याक्ति की स्थिति से उभरे और खुसरो और कैसर की तरह अरब उपमहाद्वीप के स्वतंत्र शासक बने। आपने एक ऐसा महान राज्य स्थापित किया जो साढ़े चौदह सदियों की लम्बी मुद्दत गुजरने के बावजूद आज भी मौजूद है और अगर महानता का पैमाना वह समर्पण है जो किसी नायक को उसके अनुयायियों से प्राप्त होता है तो आज भी सारे संसार में फैली अरबों (लगभग 375 करोड़) आत्माओं को मोहम्मद साहेब का नाम जादू की तरह सम्मोेहित करता है।
सत्यवादी से भी अधिक

एक कहावत है- ईमानदार व्यक्ति खुदा का है। मोहम्मद (सल्ल) तो ईमानदार से भी बढ़कर थे। उनके अंग-अंग में महानता रची-बसी थी। मानव-सहानुभूति और प्रेम उनकी आत्मा का संगीत था। मानव-सेवा, उसका उत्थान, उसकी आत्मा को विकसित करना, उसे शिक्षित करना। सारांश यह कि मानव को मानव बनाना उनका मिशन था। उनका जीना, उनका मरना सब कुछ इसी एक लक्ष्य को अर्पित था। उनके आचार-विचार, वचन और कर्म का एक मात्र दिशा निर्देशक सिद्धान्त एवं प्रेरणा स्रोत मानवता की भलाई था।
आप अत्यन्त विनीत, हर आडम्बर से मुक्त तथा एक आदर्श निःस्वार्थी थे। आपने अपने लिए कौन-कौन सी उपाधियाँ चुनीं? केवल दो- अल्लाह का बन्दा और उसका पैगम्बर, और बन्दा पहले फिर पैगम्बर। आप (सल्ल.) वैसे ही पैगम्बर और संदेशवाहक थे। जैसे संसार के हर भाग में दूसरे बहुत से पैगम्बर गुज़र चुके हैं। जिनमें से कुछ को हम जानते है और बहुतों को नहीं। अगर इन सच्चाइयों में से किसी एक से भी ईमान उठ जाए। तो आदमी मुसलमान नहीं रहता। यह तमाम मुसलमानों का बुनियादी अकीदा है।एक यूरोपीय विचारक का कथन है- ‘‘उस समय की परिस्थितियां तथा उनके अनुयायियों की उनके प्रति असीम श्रद्धा को देखते हुए पैगम्बर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कभी भी मोजज़े (चमत्कार) दिखा सकने का दावा नहीं किया।’’ पैगम्बरे-इस्लाम से कई चमत्कार जाहिर हुए। लेकिन उन चमत्कारों का प्रयोजन धर्म प्रचार न था। उनका श्रेय आपने स्वयं न लेकर पूर्णतः अल्लाह को और उसके उन अलौकिक तरीकों को दिया जो मानव के लिए रहस्यमय हैं। आपने अपने अनुयायियों का ध्यान प्रकृति और उनके नियमों के अध्ययन की ओर फेर दिया। ताकि उनको समझें और अल्लाह की महानता का गुणगान करें। कुरआन कहता है- ‘‘और हमने आकाश व धरती को और जो कुछ उनके बीच है, कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया। हमने इन्हें बस हक के साथ (सोद्देश्य) पैदा किया। परन्तु इनमें अधिकतर लोग (इस बात को ) जानते नहीं।’’(कुरआन 44/38.39)
उम्मी ईश दूत

हजरत मोहम्मद ने एथेन्स, रोम, ईरान, भारत या चीन के ज्ञान-केन्द्रों से दर्शन का ज्ञान प्राप्त नहीं किया था। लेकिन आपने मानवता को चिरस्थायी महत्व की उच्चतम सच्चाइयों से परिचित कराया। वे उम्मी/निरक्षर थे। लेकिन उनको ऐसे भाव पूर्ण और उत्साहपूर्ण भाषण करने की योग्यता प्राप्त थी कि लोग भाव-विभोर हो उठते और उनकी आंखों से आंसू फूट पड़ते। वे अनाथ थे और धनहीन भी। लेकिन जन-जन के हृदय में उनके प्रति प्रेम भाव था। उन्होंने किसी सैन्य अकादमी से शिक्षा ग्रहण नही की थी। लेकिन फिर भी उन्होंने भयंकर कठिनाइयों और रुकावटों के बावजूद सैन्य शक्ति जुटाई (ऐसी सैन्य शक्ति जिसमें का कोई भी ब्यक्ति वेतन भत्ता नहीं लेता था बल्कि अपना ही धन अनाज इत्यादि लोगों पर खर्च करता था) और अपनी आत्म शक्ति के बल पर जिसमें आप अग्रणी थे, कितनी ही विजय प्राप्त कीं।
कुशलतापूर्वक धर्म-प्रचार करने वाले ईश्वर प्रदत्त योग्यताओं के लोग कम ही मिलते हैं। डेकार्ड के अनुसार ‘‘आदर्श उपदेशक संसार के दुर्लभतम प्राणियों में से है।’’ हिटलर ने भी अपनी पुस्तक (मेरी जीवनगाथा) में इसी तरह का विचार व्यक्त किया है। वह लिखता है -‘‘महान सिद्धान्तशास्त्री कभी-कभार ही महान नेता होता है। इसके विपरीत एक आन्दोलनकारी व्यक्ति में नेतृत्व की योग्यताएंं अधिक होती हैं। वह हमेशा एक बेहतर नेता होगा। क्योंकि नेतृत्व का अर्थ होता है, अवाम को प्रभावित एवं संचालित करने की क्षमता। जन-नेतृत्व की क्षमता का नया विचार देने की योग्यता से कोई सम्बंध नहीं है।’’ लेकिन वह आगे कहता है ‘‘इस धरती पर एक ही व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री भी हो, संयोजक भी हो और नेता भी, यह दुर्लभ है। किन्तु महानता इसी में निहित है।’’ पैगम्बरे-इस्लाम मोहम्मद के व्यक्तित्व में संसार ने इस दुर्लभतम उपलब्धि को सजीव एवं साकार देखा है। इससे अधिक विस्मयकारी है वह टिप्पणी, जो बास्वर्थ स्मिथ ने की है- ‘‘वे (मोहम्म्द सल्ल.) जैसे सांसारिक राजसत्ता के प्रमुख थे, वैसे ही दीनी पेशवा भी थे। मानो पोप और कैसर दोनों का व्यक्तित्व उन अकेले में एकीभूत हो गया था। वे सीजर (बादशाह) भी थे पोप (धर्मगुरु) भी। वे पोप थे किन्तु पोप के आडंबर से मुक्त। और वे ऐसे कैसर थे, जिनके पास राजसी ठाट-बाट, आगे-पीछे अंगरक्षक और राजमहल न थे।
