बीकानेर : ‘दीयाळी रा दीया दीठा, काचर-बोर-मतीरा मीठा’ कहावत चरितार्थ हो गई है। बाजार में एक ओर दीपावली जैसी अमावस्या की रात को रोशन करने के लिए हजारों दीपक बिक रहे हैं वहीं कई जगह काचर, बोर, मतीरा जैसे देशी ऋतुफल दिख रहे हैं। हालांकि जानकार मानते हैं कि अब मतीरा बहुत कम होने लगा है और इसकी जगह तरबूज ले रहे हैं लेकिन पारंपरिक पद्धति से पूजा करने वाले देशी फलों का ही पूजा में प्रयोग करते हैं।
इसी लिहाज से बाजार में खरीदारी कर रहे है राधाकिसनजी कहते हैं, छोटा-बड़ा कैसा भी हो। सस्ता-महंगा जैसा भी हो। मतीरा तो लेना ही है। कुछ इसी तरह दीपक, कुलड़िया, हटड़ी, गुल्लक आदि मिट्टी से बने हुए लेने का रिवाज भी खूब निभाया जा रहा है। हालांकि लाइट्स की लड़ियां जगमगा रही है लेकिन दीपक का दम बदस्तूर है। ऐसे में कहा जा सकता है कि बीकानेर का बाजार अब भी वोकल पर लॉकल है और इसके लिए किसी नेता या अर्थशास्त्री की अपील-प्रोत्साहन की जरूरत नहीं है।
सोना-चांदी, बर्तन-कपड़ा:
बाजार के खुदरा खरीदारों में जहां कपड़े, जूते, कॉस्मेटिक पर जोर है वहीं सोना-चांदी खरीदने का दस्तूर भी चल रहा है। तेलीवाड़ा सर्राफा बाजार, बड़ा बाजार, महात्मा गांधी मार्ग के शो-रूम से लेकर गली-मोहल्ले की छोटी-छोटी दुकानों पर चांदी के सिक्के से लेकर सोने के गहनों तक की खरीदारी हो रही है। कुल मिलाकर, खुशियों के इस पर्व पर हर कोई कुछ न कुछ खरीद रहा है। यह खरीद जहां घर की जरूरत के हिसाब से है वहीं पूरे वर्ष खुशहाली और खरीदारी बरकरार रहने की उम्मीद में भी यह दस्तूर हो रहा है।