Ayodhya : आज ताे अवध सईयां झमकि झुलाऊंगी…

0
16

अयोध्या : (Ayodhya) ” चलाे देखें सिया रघुवीर झुलनवा झूल रहे..। आज ताे अवध सईयां झमकि झुलाऊंगी..।।” यह बाेल हैं अयाेध्याधाम के स्वर्गद्वार स्थित प्रसिद्ध पीठ ठाकुर रामजानकी वल्लभ भागलपुर मंदिर (famous Peeth Thakur Ram Janaki Vallabh Bhagalpur temple located at Swargdwar of Ayodhya Dham) के। जहां पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर महंत नवलकिशाेर दास महाराज के (Peethadheeshwar Mahant Navalkishore Das Maharaj) दिशा-निर्देशन में झूलन महोत्सव अपने चरम पर है। मठ में नित्य सायंकाल आरती-पूजन के ही साथ युगल सरकार के झूलनाेत्सव की दिव्य झांकी सज रही है। झूलन झांकी का सिलसिला देररात्रि तक चल रहा है। झूलन महोत्सव में अयोध्यानगरी के नामचीन कलाकार चार-चांद लगा रहे हैं। मंदिर में कलाकाराें द्वारा झूलन सरकार के झूलनाेत्सव की भव्य महफिल सजाई जा रही है, जिससे साधु-संत व श्राेतागण मंत्रमुग्ध हो रहे हैं। पीठ के पीठाधिपति ने कलाकारों को न्याैछावर भी भेंट किया। साधु-संत से लेकर भक्तजन युगल सरकार के झूलन झांकी का दर्शन कर पुण्य के भागी बन रहे हैं। भक्तगण आहलादित और उल्लसित भी हैं। मठ में झूलन सरकार के झूलन झांकी का दर्शन हेतु भक्तों का तांता लगा हुआ है,जाे टूटने का नाम नहीं ले रहा है। सभी झूलनाेत्सव के उल्लास में डूबे हुए हैं। पूरा मंदिर प्रांगण भक्तिमय वातावरण में हिलाेरे मार रहा है। आश्रम झूलनाेत्सव के पदाें से गुंजायमान है। चहुंओर उत्सव की आभा देखते बन रही है।

इस अवसर पर भागलपुर मंदिर के पीठाधिपति महंत नवलकिशाेर दास महाराज ने बताया कि आश्रम में युगल सरकार के झूलनाेत्सव का कार्यक्रम चल रहा है। जाे श्रावण शुक्ल एकादशी से शुरू है और सावन शुक्ल पूर्णिमा (Shravan Shukla Ekadashi and will continue till Shravan Shukla Purnima)अर्थात रक्षाबंधन तक चलेगा। उसके बाद झूलन महोत्सव का समापन हाे जायेगा। झूलन महोत्सव की परंपरा त्रेतायुग से चली आ रही है। त्रेतायुगीन परंपरा काे पहले हमारे पूर्वाचार्य व उसके बाद अब हम सब आगे बढ़ा रहे हैं। युगल सरकार के झूलनाेत्सव की झांकी बहुत ही दिव्य है। इसका दर्शन करने मात्र से ही अपार पुण्य की प्राप्ति हाेती है। जाे भी व्यक्ति झूले पर विराजमान युगल सरकार के दिव्य एवं मनाेरम झूलन झांकी का दर्शन करता है। वह सदा-सदा के लिए आवागमन से मुक्त हो जाता है। उसे चाैरासी लाख योनियों में कभी नहीं झूलना पड़ता है। इस माैके पर विशिष्ट संत-महंत व मंदिर से जु़ड़े शिष्य-अनुयायी, परिकर माैजूद रहे। जिन्होंने झूलन झांकी का दर्शन कर अपना जीवन कृतार्थ किया।