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Ayodhya: धर्म व राष्ट्र की रक्षा के साथ संस्कारों की करें रक्षाः प्रज्ञा महाला

अयोध्या:(Ayodhya) हर हिन्दू बहन अपने चरित्र की सुरक्षा करते हुए समाज एवं राष्ट्र की सुरक्षा करे। साथ ही धर्म की रक्षा करते हुए संस्कारों की रक्षा करे। यह बातें दुर्गा वाहिनी की राष्ट्रीय संयोजिका प्रज्ञा महाला ने कही है। दुर्गा वाहिनी हिन्दू युवतियों का एक संगठन है, जो सेवा, सुरक्षा एवं संस्कार को अपना आदर्श वाक्य मानकर हिन्दू समाज में पुनर्जागरण लाकर राष्ट्रधर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए काम करता है। प्रज्ञा महाला से हिन्दुस्थान समाचार के संवाददाता बृजनन्दन राजू ने संगठन और समाज से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की। प्रस्तुत है संक्षिप्त अंश-

प्रश्न- एक लम्बे संघर्ष के बाद रामलला अपने स्थान पर विराजमान हुए हैं। कैसा अनुभव कर रही हैं आप?

उत्तर- श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला के विराजमान होने का जो आनंद है उसे हम शब्दों में प्रकट नहीं कर सकते। उस आनंद को बस अनुभव किया जा सकता है। अनुभव में हम नाचें, गायें, रोयें, खुशियां मनायें यह सब उसी प्रकटीकरण में आ जाता है। वह अव्यक्त भावनाएं हैं। हमें क्या प्राप्त हुआ यह समझ में नहीं आ रहा है लेकिन यह एक अलौकिक अनुभव है।

प्रश्न- श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में दुर्गा वाहिनी का क्या योगदान रहा?

उत्तर- राम मंदिर आंदोलन के दौरान सभी कार्ययोजनाओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने में बहनें पीछे नहीं रहीं। 1990 का रक्तरंजित परिदृश्य उन्हें विचलित नहीं कर सका। पुलिस ने जब कारसेवकों पर लाठीचार्ज किया तो वह ढाल बनकर खड़ी हो गईं। इसी योगदान को देखकर दुर्गावाहिनी के नाम से बहनों का संगठन प्रारम्भ किया गया। वर्ष 1992 की कारसेवा में देश के हर प्रांत से बहनों की सहभागिता रही। ढांचा विध्वंस के दौरान सबने देखा कि बहनें गुम्बद के ऊपर चढ़कर ढांचा तोड़ रही थीं। उसी स्वरूप को देखकर विचार आया कि इनकी शक्तियों को संगठित कर अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया जाय।

प्रश्न- दुर्गा वाहिनी की स्थापना कब हुई?

उत्तर- वर्ष 1990 की कारसेवा में जो घटनाएं हुईं, कारसेवकों के ऊपर अत्याचार हुआ, गोलीबारी हुई, प्रशासन की रोक के बावजूद बड़ी संख्या में युवा बहनें कारसेवा में आई थीं। उनको एक संगठन का रूप देने के लिए 1991 में दुर्गा वाहिनी की स्थापना हुई। साध्वी ऋतम्भरा को संस्थापक संयोजिका बनाया गया। बहनों का यह संगठन दुर्गा माता को आदर्श मानते हुए दुर्गा माता के स्वरूप को याद करते हुए उनके ही आदर्श से अनुप्राणित होने के लिए कटिबद्ध है।

प्रश्न- किस उद्देश्य को लेकर दुर्गा वाहिनी काम करती है?

उत्तर- हमारे तीन ध्येय वाक्य हैं- सेवा, सुरक्षा और संस्कार। इन्हीं बिंदुओं को आधार मानते हुए समाज में युवा बहनों के बीच में भावनाएं डालने के साथ-साथ धर्म रक्षा, राष्ट्र रक्षा में उनकी भी प्रमुख भूमिका है। इसके साथ-साथ परिवार को बनाने में परिवार को संभालने में और परिवार को संस्कार देने में माताओं की भूमिका रहती हैं। आज की दुर्गाएं कल की माताएं हैं इसलिए वह अपने परिवार को सम्भालें और परिवार में सेवा, सुरक्षा एवं संस्कार के बीच रोपण करते हुए राष्ट्र चिंतन करें। भारत माता, गौ माता, मठ-मंदिर और धर्मग्रंथों की सुरक्षा के लिए बहनों के मन और परिवार में यह भाव जगे इस उद्देश्य को लेकर दुर्गा वाहिनी काम करती है।

प्रश्न- कार्य की दृष्टि से वर्तमान में दुर्गा वाहिनी की क्या स्थिति है?

उत्तर- पिछले कई वर्षों से दुर्गा वाहिनी के संगठनात्मक विस्तार पर काम चल रहा है। संगठनात्मक दृष्टि से 85 प्रतिशत जिलों में हमारा काम है। इस षटपूर्ति वर्ष में प्रखंड तक हम संयोजिका बनाएंगे और पांच लोगों की एक समिति बनाएंगी, जिसमें संयोजिका, सह संयोजिका, शक्ति साधना केंद्र प्रमुख, सेवा प्रमुख और महाविद्यालय छात्रा सम्पर्क प्रमुख रहेंगी। आयाम की दृष्टि से कार्य को बढ़ाने के लिए बाल संस्कार केंद्र प्रमुख, मिलन केंद्र प्रमुख और महाविद्यालय छात्रा सम्पर्क प्रमुख ऐसी रचना है। 15 से 35 वर्ष की बहनें दुर्गा वाहिनी में काम करती हैं। प्रश्न- बहनों को शारीरिक व बौद्धिक दृष्टि से सबल बनाने के लिए दुर्गा वाहिनी में कौन-कौन सी गतिविधियां होती हैं।

उत्तर- बहनों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने के लिए शक्ति साधना केन्द्र चलते हैं। आत्मरक्षा के सारे कौशल शक्ति साधना केंद्र में सिखाये जाते हैं। पूरे देश में अभी 700 शक्ति साधना केंद्र नियमित चलते हैं। एक घंटे में सूर्य नमस्कार, योगाासन, दंड, निःयुद्ध, प्रार्थना व देशभक्ति गीत, भजन बहनें करती हैं।

प्रश्न- बहनों के लिए आप का क्या संदेश है?

उत्तर- हर हिन्दू बहन अपने धर्म को समझे। अपने धर्म की रक्षा, राष्ट्र की रक्षा के साथ-साथ संस्कारों की रक्षा करे। इसके अलावा आज समाज में जो लव जिहाद की घटनाएं बढ़ रही हैं उसे रोकने का प्रयास करे, धर्मान्तरण को रोकने का प्रयास करें। सभी मिलकर काम करें। सभी हिन्दू एक हैं। हमारे बीच जाति, पंथ का भेदभाव न रहे। सामाजिक समरसता के भाव को समझते हुए स्वयं संस्कारयुक्त हों और स्वयं सेवाभावी बने। बहनें अपने चरित्र की सुरक्षा करते हुए समाज एवं राष्ट्र की सुरक्षा करें। यही हमारा आग्रह है।

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