AHMEDABAD : अमित जेठवा हत्या मामला : उच्च न्यायालय ने आरोपी की उम्रकैद की सजा निलंबित की, जमानत प्रदान की

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अहमदाबाद: (AHMEDABAD) गुजरात उच्च न्यायालय ने 2010 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के आरोपी शिव सोलंकी की उम्रकैद की सजा निलंबित कर दी और उन्हें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील पर सुनवाई लंबित रहने तक जमानत दे दी।न्यायमूर्ति एस एच वोरा और न्यायमूर्ति मौना भट्ट की पीठ ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी के भतीजे शिव सोलंकी की सजा को निलंबित कर दिया। दीनू मामले में सात आरोपियों में से एक हैं जिन्हें 20 जुलाई, 2010 को उच्च न्यायालय परिसर के बाहर जेठवा को गोली मारने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

अदालत ने शिव सोलंकी को इस शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया कि वह अपील की सुनवाई के दौरान गुजरात नहीं छोड़ेंगे, अपना पासपोर्ट जमा करेंगे, हर महीने थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे और अदालत में अपनी अपील की सुनवाई में शामिल होंगे।अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया सीबीआई अदालत द्वारा सोलंकी की दोषसिद्धि ‘‘त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि परिस्थितिजन्य साक्ष्य और दोषसिद्धि की आवश्यकता के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित सभी सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है।’’

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ परिस्थितियों को मुकम्मल रूप से देखने पर ऐसी कोई कड़ी नजर नहीं आती जिससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा जाए कि अपराध याचिकाकर्ता ने किया था। अदालत ने कहा कि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता को ‘फर्जी तरीके से फंसाया’ गया।उच्च न्यायालय ने सितंबर 2021 में मुख्य आरोपी और भाजपा के पूर्व सांसद दीनू सोलंकी की 7 जून, 2019 को सीबीआई अदालत द्वारा दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील लंबित रहने तक सजा को निलंबित कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने बाद में जमानत के आदेश की पुष्टि की थी। शिव सोलंकी ने उच्च न्यायालय में सुनवाई और अपील के अंतिम निस्तारण तक सजा को निलंबित करने और जमानत पर रिहा करने का अनुरोध किया था।

जेठवा की 20 जुलाई, 2010 को गुजरात उच्च न्यायालय के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब उन्होंने कथित रूप से आरटीआई आवेदनों के माध्यम से दीनू सोलंकी से जुड़ी अवैध खनन गतिविधियों का पर्दाफाश करने की कोशिश की थी।दो अज्ञात हमलावरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच को आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसने आरोप पत्र दाखिल किया। सितंबर 2012 में, उच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच सौंपी, और न्यायाधीश ने सात जून, 2019 को सात लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

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