
स्त्री को नहीं चाहिए खेत
नहीं चाहिए खलिहान
उसे तो महज गमलानुमा
प्यारा सा एक घर चाहिए
जहाँ वो बो सके प्रेम
वो बोती है प्रेम
किराये के घर में
वो बोती है प्रेम उस घर में भी
जो कभी उसके नाम होता नहीं
वो बोती है प्रेम
चट्टान में भी
पीपल की तरह वहां भी
उगा लेती है प्रेम
वो हर बंजर जमीन को
उपजाऊ बना लेती है
और बोती है सिर्फ प्रेम.