रोजाना एक कविता: आज पढ़िए अमित बृज की कविता ‘पूर्णता और शून्य’

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मंजिल से ज्यादा जरुरी है
पथ पर ठीक से चलना,
कुछ खास फर्क नहीं होता
पूर्णता और शून्य में
तुम्हारा संघर्ष
तुम्हारे कद से कहीं ऊंचा था
अलविदा पथिक
मिलेंगे फिर कभी