
कविता को कैसा होना चाहिए ?
इसका ज़वाब मेरे पास नहीं है
पर इतना जानता हूँ कि:
कविता को पायल नहीं पहनना चाहिए
और न माथे पर सिंदूर लगाना चाहिए
मैं ये नहीं कहता कि वह सिंगार न करे
पर इतना जरूर कहता हूँ वह किसी के लिए व्रत न रहे और शाम के चार बजते ही सजने न लगे
उसे कितना आवारा होना है और कितना घरेलू
यह वह ख़ुद ही तय करे
मैं बस इतना चाहता हूँ कि हर कविता ज़रूरत भर आवारा जरूर हो
उसके नाख़ूनों में बघनहे उग आएं ऐसा भी नहीं
पर सिर्फ़ नेलपॉलिश लगाने के लिए ही न हो उसके नाख़ून
उसे चूमते हुए ध्यान रखना पड़े कि कोमलता को उचित सम्मान मिल रहा है
उसे पुकारते हुए कुछ हो न हो
एक विश्वास जरूर हो
कि कहीं कोई है जो सुन रहा है
कविता सूर्य के सामने दीपक की तरह जलती रहे
अपनी राह पर अकेले ही चलती रहे
जो देखना चाहते हैं कविता के आईने में चेहरा देखें
सभी खोई हुई परिभाषाएं
कविता की आत्मा के आँगन में
सूप से अनाज पछोर रही हैं
उनके बाल खुले हुए हैं और चभरियाँ बँधी हुई है।