रोजाना एक कविता : सत्य और सत्ता का संघर्ष है मोहित मिश्र की कविता ‘तानाशाही के साये में गणतंत्र’

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A poem a day: The struggle for truth and power is Mohit Mishra's poem 'Republic in the shadow of dictatorship'

क्रूर तानाशाह चढ़ता आ रहा है,
देश का दुर्भाग्य बढ़ता आ रहा है,
रोक लो इसको तुम्ही से आस है रे,
अग्नि कर दो कंठ में जो प्यास है रे,

मुट्ठियाँ भींचो कलम में आग भर लो,
कंठ – कल में भैरवी की राग भर लो,
लौह-सा ये वक्ष लोहे से लड़ा दो,
गोलियों पर रक्त अपना तुम चढ़ा दो,

धैर्य कैसा ! क्यों प्रतीक्षा कर रहे हो ?
मर न जाओ, खण्ड में जो मर रहे हो!
या हुकूमत की हिमाकत राख कर दो,
फोड़ दो आँखें कलेजा चाक कर दो,

पार कर दो क्रांतियों की सब हदों को,
लाल कर दो रंग की सब सरहदों को,
भींच लो गर्दन हलक में हाथ डालो,
और अपने प्रश्न का उत्तर निकालो,

चप्पलों से रौंद दो तुम इन किलों को,
चौक पर लाकर पटक दो कातिलों को,
ठोकरों पर रख कमीने झूल जाएं,
धूल में रौंदों सियासत भूल जाएं।

त्याग कर सर्वस्व रण में तुम लड़ो रे।
यह समय की मांग है पूरा करो रे।