
जिसने छोड़े हैं मेरे दिल पर कटारी के सबूत
देखिए वो मांगता है मुझसे यारी के सबूत
ख़ुदकुशी क्यों कर ली उसने राम ही जाने मगर
उसकी जेबों से तो निकले हैं उधारी के सबूत
चौकड़ी भरते हुए हिरनों ! पता भी है तुम्हें?
मिल रहे हैं चप्पे-चप्पे पर शिकारी के सबूत
मैं तो हूं बीमारे – उल्फ़त, बात मेरी और है
पर तेरे चेहरे पे क्यों हैं बेक़रारी के सबूत
तर्के – मय के ख़ूब दावे कीजिए, लेकिन हुज़ूर
आपके लहजे में हैं मय की ख़ुमारी के सबूत
किस सफ़ाई से गुनह अपने मेरे सर मढ़ दिए
दे दिए तुमने भी अपनी होशियारी के सबूत
राज में तेरे यक़ीनन है तरक़्क़ी पर वतन
बढ़ रहे हैं दिन- ब दिन बेरोज़गारी के सबूत
ऐ ‘अकेला’ बेईमानों की ज़रा जुरअत तो देख
मांग बैठे हैं मेरी ईमानदारी के सबूत