रोजाना एक कविता : आज पढ़ें सामाजिक सच्चाइयों को बेनक़ाब करने वाले लोकप्रिय शायर राकेश रेड्डी की ग़ज़ल ‘जिंदगानी’

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किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं होता

मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन
किसी की ज़िंदगी में मेरा हिस्सा क्यूँ नहीं होता

जहाँ में यूँ तो होने को बहुत कुछ होता रहता है
मैं जैसा सोचता हूँ कुछ भी वैसा क्यूँ नहीं होता

हमेशा तंज़ करते हैं तबीअत पूछने वाले
तुम अच्छा क्यूँ नहीं करते मैं अच्छा क्यूँ नहीं होता

ज़माने भर के लोगों को किया है मुब्तला तू ने
जो तेरा हो गया तू भी उसी का क्यूँ नहीं होता