
प्रेम मेरी हत्या कैसे करेगा?
कैसे हो पाएगा वह
मेरी उस गर्दन पर चाक़ू रख पाने जितना निष्ठुर
जिस गर्दन को उसने सालों
अपनी साँस की धुरी माना था?
मुझे हमेशा से सिर्फ़ इतना ही जानना था कि
प्रेम मेरी हत्या कैसे करेगा?
कैसे घसीट पाएगा वह मुझे हर रोज़
एक नए अँधेरे में?
कैसे ज़ख़्मी करेगा बार-बार
दोस्ती में आगे बढ़े मेरे हाथ?
क्या प्रेम की मृत्यु में डूबते ही
मृत्यु का स्पर्श बदल जाता है?
जिज्ञासा हमेशा जीवन पर भारी पड़ी।
आख़िर कितना क्रूर हो सकता है प्रेम?
यही जानने के लिए
मैंने हमेशा सिर्फ़ प्रेम के हाथों मरना चाहा।