रोजाना एक कविता : आज पढ़ें पवन सेठी की कविता तुम और तुम्हारी ज़िद

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चाहा बहुत कुछ बदल दें
मसलन तुम, ज़िद्द, आदतें
कब तक कोशिश करता मैं
कब तक कुढ़ता मरता मैं
न तुम्हें बदल पाया
न मैं खुद बेदख़ल आया
तस्वीरें फ़्रेम जड़ी हैं
दिल-औ-ज़हन में पड़ी हैं
अतीत को कह दें तस्वीरें
जैसे उलझी तक़दीरें
साथ साथ कर रहे बसर
नाउम्मीदी के हमसफ़र
कहीं तुम मैं हैं लकीरें
बनती बिगड़ती तहरीरें (तहरीरें- लिखी हुई बातें)
सर्द रिश्ते की तीरगी ( तीरगी- अंधेरा)
मान लें हम दो अजनबी
न कारवाँ न मिली मंज़िल
फिर क्यों हैं हम यूँ शामिल
शायद हो जायें काबिल
यूँ टुकड़ों में हों कामिल