motivational story : बासी अन्न

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श्रावस्ती नगरी के एक सेठ भोजन करने बैठे थे। उनकी सुशीला पुत्रवधू विशाखा हथ-पंखे से उन्हें हवा कर रही थी। तभी एक बौद्ध भिक्षु उनके द्वार पर आ खड़ा हुआ। उसने भिक्षा मांगी। सेठ ने पुकार पर गौर नहीं किया। वे ध्यानमग्न भोजन करते रहे।

भिक्षु ने फिर पुकारा, तब विशाखा बोली: ‘आर्य! मेरे ससुर बासी अन्न खा रहे हैं। अतः आप अन्य कहीं से भिक्षा ले लें। सेठ की आंखें लाल हो गईं। उन्होंने भोजन छोड़ दिया। हाथ धोकर पुत्र-वधू से बोले ‘तूने मेरा अपमान किया है। मेरे घर से अभी निकल जा।

विशाखा ने नम्रतापूर्वक याद दिलाया

मेरे विवाह के वक्त आपने मेरे पिता को वचन दिया है कि मेरी कोई भूल होने पर आठ सद्गृहस्थों से निर्णय कराएंगे और तब मुझे दंड देंगे।’ सो, सेठ ने आठ प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलवाया। विशाखा ने अपना मत रखा-‘मनुष्य को • अपने पूर्वजन्म के पुण्यों के फल से ही सम्पत्ति मिलती है। मेरे ससुर को जो सम्पत्ति मिली है, वह भी उनके पहले के पुण्यों का फल है। इन्होंने अब नया पुण्य करना बंद कर दिया। इसीलिए मैंने कहा कि ये बासी अन्न खा रहे हैं।’ पंचों को निर्णय नहीं देना पड़ा। सेठ ने स्वयं लज्जित होकर, पुत्रवधू से क्षमा मांगी।