शाम को सड़क पर एक बच्चा

0
142

चन्द्रकान्त देवताले

शाम को सड़क पर
वह बच्चा
बचता हुआ कीचड़ से
टेम्पो, कार-तांगे से
उसकी आंखों में
चमकती हुई भूख है और
वह रोटी के बारे में
शायद सोचता हुआ…

कि चौराहे को पार करते
वह अचकचा कर
रह गया बीचों-बीच सड़क पर
खड़ा का खड़ा,
ट्रैफिक पुलिस की सीटी बजी
रुकी कारें-टेम्पो-स्कूटर
एक तो एकदम नज़दीक था उसके
वह यह सब देख बेहोश-सा
गिर पड़ा,

मैं दौड़ा-पर पहुंच नहीं पाया
कि उसके पहले उठाया उसे
सन्तरी ने कान उमेठ
होश-जैसे में आ,
वह पानी-पानी,
कहने लगा बरसात में
फिर बोला बस्ता मेरा…

तभी धक्का दे उसे
फुटपाथ के हवाले कर
जा खड़ा हो गया सन्तरी अपनी छतरी के नीचे

सड़क जाम थी क्षण भर
अब बहने लगी पानी की तरह
बच्चा बिना पानी के
जाने लगा घर को

बस्ते का कीचड़ पोंछते हुए…

कवि परिचय :


नई पीढ़ी के पसंदीदा कवियों में से एक रहे देवताले की कविताएं आम जनता के सुख दुख बयान करती रही हैं। उनकी मुख्य कृतियां -लकड़बग्घा हंस रहा है, हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, रोशनी के मैदान की तरफ, आग हर चीज में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, भूखण्ड तप रहा है।