
संत शाह अली सहारनपुर से लखनऊ जा रहे थे। रेलवे स्टेशन पर उन्होंने से शिष्यों से कहा कि उनका सारा सामान तुलवा कर उसका रेल भाड़ा अदा कर दें। उस गाड़ी का गार्ड उनका भक्त था। वह बोलाः ‘मैं बरेली तक चलूंगा। आप चिन्ता न करें।”
‘भाई मुझे तो और आगे जाना है।’ शाह साहब ने कहा। गार्ड बोला: ‘बरेली से जो गार्ड लखनऊ तक जाएगा, मैं उसे कह दूंगा। आपको किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होगा।’
‘बर्खुरदार, मेरा सफर बहुत लंबा है!’ शाह जी ने मुस्कराते हुए कहा। ‘लेकिन आपको तो लखनऊ जाना था?” गार्ड बोला!
‘हाँ, अभी तो लखनऊ तक ही जाना है, परन्तु जीवन की यात्रा बहुत लंबी है। वह खुदा के पास जाने पर खत्म होगी। वहां पूरे सामान का किराया न चुकाने के गुनाह की सजा से मुझे कौन बचाएगा?’ गार्ड लज्जित हो गया। शिष्यों ने शाह जी का सारा सामान तुलवा कर पूरा रेल भाड़ा चुका दिया।