दरभंगा : (Darbhanga) बिहार में मधुबनी ज़िले की बिस्फी विधानसभा सीट (Bisfi assembly seat) (संख्या 35) 2025 के चुनाव में एक बार फिर सुर्खियों में है। यह सीट बिहार की राजनीति में स्विंग सीट मानी जाती है—2015 में राजद ने जीत दर्ज की, जबकि 2020 में भाजपा ने कब्ज़ा जमाया।
इस बार भी मुकाबला कड़ा और दिलचस्प रहने की उम्मीद है। 2020 में भाजपा के हरिभूषण ठाकुर “बच्चू” ने लगभग 82,000 वोट पाकर राजद के फैयाज अहमद (लगभग 70,000 वोट) को 12,000 वोटों से हराया था। वहीं 2015 में फैयाज अहमद ने जीत दर्ज की थी। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि बिस्फी में किसी दल की स्थायी पकड़ नहीं है।
वर्तमान विधायक हरिभूषण ठाकुर “बच्चू” (Current MLA Haribhushan Thakur “Bacchu”) भाजपा के फायरब्रांड नेता माने जाते हैं और उन्हें लगभग निर्विरोध उम्मीदवार समझा जा रहा है, हालांकि औपचारिक घोषणा बाकी है। उनकी मजबूत नेतृत्व क्षमता के बावजूद यह साफ़ है कि जीत का रास्ता जदयू के सहयोग से ही आसान होगा। 2015 का चुनाव इसका उदाहरण है, जब जदयू और राजद (JDU and RJD) साथ थे और हरिभूषण ठाकुर (Haribhushan Thakur) को हार का सामना करना पड़ा। 2020 की सफलता को 2025 में दोहराने के लिए भाजपा को जदयू कार्यकर्ताओं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के प्रभाव को साधकर रखना होगा।
बिस्फी सीट का बिहार की सत्ता में विशेष महत्व है। 2020 में मधुबनी की आठ सीटों में भाजपा जीती, जबकि दरभंगा की दस में से नौ सीटें एनडीए के खाते में गईं। दोनों ज़िलों की कुल 20 सीटों में से 17 पर एनडीए की जीत ने राज्य सरकार गठन में निर्णायक भूमिका निभाई। इसलिए 2025 में एनडीए के लिए इस सीट पर जीत दोहराना अहम होगा।
स्थानीय मुद्दों की बात करें तो बाढ़ और जलजमाव यहाँ का स्थायी संकट है। कमला बलान (Kamla Balan) और अन्य नदियों के कटाव से हर साल भारी नुकसान होता है। ग्रामीण इलाकों की टूटी-फूटी सड़कें और जर्जर पुल लंबे समय से जनता की नाराज़गी का कारण बने हुए हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी और सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक व उपकरणों का अभाव भी बड़ी समस्या है। इसके साथ ही युवाओं का रोज़गार और पलायन एक गंभीर सामाजिक चुनौती है।
जातीय समीकरण के लिहाज़ से यादव मतदाता लगभग 22–25% और मुस्लिम मतदाता 18–20% के आसपास माने जाते हैं, जो राजद का पारंपरिक आधार है। ब्राह्मण (10–12%) और भूमिहार (8–10%) भाजपा के कोर वोटर हैं, जबकि कोइरी/कुशवाहा (7–9%) और दलित (12–14%) मतदाता जदयू, भाजपा और राजद सभी के लिए निर्णायक स्विंग वोट हैं। अन्य समुदाय, जिनमें कायस्थ, वैश्य और अन्य पिछड़ा वर्ग शामिल हैं, लगभग 10–12% हैं और इनका रुझान स्थानीय उम्मीदवार और मुद्दों पर निर्भर करता है। 2025 के संभावित प्रत्याशियों में भाजपा से हरिभूषण ठाकुर “बच्चू” का नाम लगभग तय है।
राजद की ओर से कई नाम चर्चा में हैं, जिनमें सबसे प्रमुख हैं युवा और साफ़-सुथरी छवि वाले आसिफ अहमद, जो बेहतरीन वक्ता माने जाते हैं और सभी वर्गों में पकड़ रखते हैं। उन्होंने रहिका अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में ताला लगे रहने का मुद्दा उठाकर स्वास्थ्य विभाग को कटघरे में खड़ा किया। आसिफ ने कहा कि “सैकड़ों समस्याएँ हैं, पर शिक्षा, स्वास्थ्य और शुद्ध पेयजल सबसे अहम हैं।” इनके अलावा मनोज यादव, अंबर जिलानी और अब्दुल हय भी दावेदार हैं। कांग्रेस से इफ्तियाज नूरानी, अमानुल्लाह खान, राशिद फाकरी, ग़ज़नफर जलाल गगन और शीतलाम्बर झा के नाम सामने हैं। सीपीआई (ML) से मनोज यादव, जबकि जन सुराज से वशिष्ठ नारायण झा, मोहम्मद कलीम, नागेंद्र प्रसाद यादव, संजय मिश्रा और अजय साह चर्चा में हैं। जन सुराज खुद को “जनता की असली आवाज़” बताते हुए शिक्षा, रोजगार और पंचायत-स्तरीय पारदर्शिता पर जोर दे रहा है। एआईएमआईएम से वकार सिद्दीकी और अखिल भारतीय मिथिला पार्टी से मनोज झा भी मैदान में उतर सकते हैं।
समीक्षात्मक दृष्टि से देखें तो बिस्फी की राजनीति 2025 में बिहार के सत्ता समीकरण का महत्वपूर्ण अध्याय बनने को तैयार है। भाजपा को अपनी 2020 की सफलता दोहराने के लिए जदयू के सहयोग के साथ मुस्लिम और यादव मतदाताओं का भरोसा बढ़ाना होगा। राजद को एम–वाई समीकरण से आगे बढ़कर सवर्ण और युवा वोटरों तक पहुँचना होगा। कांग्रेस, जन सुराज, AIMIM और अन्य दल वोट बिखराव कर सकते हैं, जिससे त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबले की संभावना है।
अंततः बाढ़, जलजमाव, सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली जैसे स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों की छवि—विशेषकर युवा, साफ़-सुथरे और सक्रिय नेता आसिफ अहमद का उभार—चुनाव को बेहद रोचक बना रहे हैं। 2025 का नतीजा किसी एक दल की लहर पर नहीं, बल्कि जमीनी मुद्दों, जातीय संतुलन और व्यापक जनविश्वास पर निर्भर करेगा।