महाकुम्भ नगर:(Mahakumbh Nagar)हिन्दू इकोनामिक फोरम (एचईएफ) एक गैर-लाभकारी संगठन है। यह संगठन हिंदू समाज की आर्थिक समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है। इसकी स्थापना भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के पूर्व छात्र स्वामी विज्ञानानंद ने वर्ष 2010 में की थी। यह संगठन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहा है। विश्व भर में जहां हिन्दू रचते-बसते हैं, वहां एचईएफ का विस्तार तेजी से हो रहा है।
खास बात यह है कि संगठन पानीपूरी बेचने वाले से लेकर बड़े उद्योगपति तक सब एक साथ, एक मंच पर आकर हिन्दू समाज की आर्थिक समृद्धि, सशक्तता और संपन्नता की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। हिन्दू इकोनामिक फोरम के कार्यप्रणाली और भविष्य की योजनाओं के बार में हिन्दुस्थान समाचार से एचईएफ के नेशनल आर्गनाइजिंग सेक्रेटरी शिवप्रसाद टीआर से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत का प्रमुख अंश…
एचईएफ का उद्देश्य क्या है शिवप्रसाद टीआर के अनुसार हिन्दू इकोनामिक फोरम राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करता है। विश्व स्तर पर इसका नाम वर्ल्ड हिन्दू इकोनामिक फोरम ( डब्ल्यूएचईएफ) है। संगठन का उद्देश्य हिंदू समाज को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। एचईएफ के माध्यम से हम हिंदू समाज के आर्थिक रूप से सफल व्यक्तियों जैसे व्यापारियों, बैंकरों, टेक्नोक्रेट, निवेशकों, उद्योगपतियों, व्यापारियों, पेशेवरों, अर्थशास्त्रियों और विचारकों को एक छत के नीचे लाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रत्येक समूह अपने व्यापारिक ज्ञान, अनुभव और विशेषज्ञता को अपने समविचार लोगों के साथ साझा कर उन्हें आर्थिक स्तर पर सबल बनाया जा सके। उन्होंने बताया कि एचईएफ की फिलासफी महान गुरु आचार्य चाणक्य के वाक्य, धर्मस्य मूलं अर्थः अर्थात् अर्थव्यवस्था ही शक्ति है, पर आधारित है।
एचईएफ का लक्ष्य हिंदू समाज को सशक्त बनाना उन्होंने बताया कि एचईएफ से जुड़ा प्रत्येक समूह पारस्परिक लाभ के लिए अपने ज्ञान, अनुभव, विशेषज्ञता और संसाधनों को अन्य सदस्यों के साथ साझा कर सकता है। इसके अलावा एचईएफ सदस्यों को उभरते हिंदू उद्यमियों को समर्थन और सलाह देने के लिए प्रोत्साहित करता है। लक्ष्य समाज के सभी वर्गों को समृद्ध बनाना है। राष्ट्रीय स्तर के अलावा विश्व स्तर पर भी एचईएफ कार्य कर रहा है।
विश्व अर्थव्यवस्था में हिंदुओं का योगदान था 35 प्रतिशत शिवप्रसाद ने बातचीत में बताया कि हमारे पूर्वजों ने वेदों में अपना ज्ञान व्यक्त किया ‘सत हस्त समाहार, सहस्त्र हस्त संकिरा’ अर्थात् सौ हाथों से धन पैदा करो और हजारों हाथों से साझा करो। इसी ज्ञान से प्रेरित होकर हमारे पूर्वजों ने एक न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण किया, जिससे ज्ञान और समृद्धि का विस्तार हुआ। पहली से 17वीं शताब्दी तक विश्व अर्थव्यवस्था में हिन्दुओं की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत थी, जिससे सभी के लिए समान समृद्धि पैदा हुई। मुगलकाल और अंग्रेजों के आने के बाद यह हिस्सेदारी घटकर पांच प्रतिशत रह गई। वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। 100 करोड़ हिन्दू आबादी है, इस लिहाज से हिंदू समाज को आर्थिक स्तर पर समृद्ध आौर सशक्त बनाने का यह उपुयक्त समय है।
हिंदू आर्थिक शक्ति उभरने की क्षमता है शिवप्रसाद बताते हैं कि एचईएफ का मानना है कि आज हिंदू आर्थिक शक्ति एक अग्रणी आर्थिक प्रणाली के रूप में फिर से उभरने की क्षमता रखती है। इसके लिए हिंदू समाज को सहयोग एवं सहकार के माध्यम से आर्थिक अवसरों में भाग लेने की जरूरत है। हिंदुओं में एक अंतर्निहित, स्व-संगठित सामाजिक व्यवस्था थी जो ज्ञान, विकास और धन की अप्रतिबंधित वृद्धि की अनुमति देती थी। यह मॉडल आज भी मान्य है, क्योंकि स्व-संगठित समुदाय उन समुदायों की तुलना में तेजी से और अधिक लचीलेपन के साथ विकसित हुए हैं। जहां सहयोग और सहयोग में बाधा उत्पन्न हुई थी। यहूदियों ने नेटवर्किंग, सामुदायिक समर्थन और संगठन के माध्यम से प्रलय को सहन करने के बाद भी 20वीं सदी में खुद को फिर से बनाया। आज यहूदी समुदाय विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति है। इसी तरह द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही के बाद जापान और जर्मनी और हाल के वर्षों में वैश्विक चीनी समुदाय सभी स्व-संगठन के माध्यम से आर्थिक शक्तियों के रूप में उभरे हैं।
हिन्दू 16 प्रतिशत योगदान में सक्षमउन्होंने बताया कि समुदायों और देशों के पुनरुत्थान में स्व-संगठन हमेशा एक प्रमुख उत्प्रेरक रहा है। एचईएफ का लक्ष्य संसाधनों, अवसरों, साझेदारी और जानकारी के लिए स्थानीय से वैश्विक कनेक्टिविटी के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना है। इससे हिंदू विश्व सकल घरेलू उत्पाद में तेजी से 16 प्रतिशत योगदान करने में सक्षम होंगे जो विश्व आबादी के उनके अनुपात के अनुरूप है। वो कहते हैं, जब हम ऐसी आर्थिक ताकत हासिल कर लेंगे तो हम अपनी आबादी की जरूरतों को भी पूरा कर सकेंगे और विश्व बिरादरी में सम्मान भी हासिल कर सकेंगे।
हिन्दुओं को उत्कृष्टता हासिल करने से कौन रोकता है शिवप्रसाद बताते हैं कि एचईएफ के संस्थापक स्वामी विज्ञानानंद का विचार है कि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं, जो हवाई जहाज, इंटरनेट, मोबाइल और अन्य आधुनिक सुविधाओं जैसी सभी उन्नत तकनीकों से लैस है। जब हम अतीत में जाकर अपने पूर्वजों द्वारा झेले गए अत्याचार, विनाश, दमन और अपमान के युग को याद करते हैं, तो हमें इस तथ्य से प्रेरणा लेनी चाहिए। जब हमारे पूर्वजों ने ऐसे कठिन समय और परिस्थितियों में काम किया और जीवित रहे, तो हमें इन तकनीकी रूप से उन्नत समय में उत्कृष्टता हासिल करने से क्या रोकता है?“
कर्नाटक में अच्छे नतीजे सामने आये शिवप्रसाद बताते हैं कि एचईएफ के विचार को मूर्तरूप देने के लिये कर्नाटक में चाय की दुकान से लेकर बड़ी इंडस्ट्री तक को साथ लाने के प्रयास जारी हैं। इसके अच्छे नतीजे सामने आये हैं।