महाकुम्भ नगर : (Mahakumbh Nagar) महाकुम्भ के इतिहास में पहली बार बौद्ध शिविर लगा है। इसका नाम ‘बौद्ध विशेष शिविर’ (‘Buddhist Special Camp’) है। इस शिविर में हुबली, कर्नाटक से आए बौद्ध भिक्षुओं ने ‘मंडला’ आर्ट का मनमोहक चित्रण किया है। महाकुम्भ में आए श्रद्धालुओं के लिए ‘मंडला आर्ट’ आकर्षण का केंद्र बनी है।
हिमालय बौद्ध संस्कृति संरक्षण सभा के अध्यक्ष लामा चोसफेल जोत्पा ने इस बाबत हिन्दुस्थान समाचार को बताया,’मंडला रेत आर्ट बौद्ध और हिन्दू परम्पराओं से जुड़ी एक अद्वितीय कला शैली है। जिसमें जटिल और आकर्षक मंडल (डिज़ाइन रेत के माध्यम से बनाए जाते हैं। यह न केवल एक सौंदर्यपूर्ण कला का रूप है, बल्कि ध्यान, आत्म-अन्वेषण और क्षणिकता का प्रतीक भी है।’
बौद्ध परम्परा में मंडला रेत आर्ट का महत्व
तिब्बती बौद्ध धर्म में, विशेष रूप से वज्रयान परम्परा में, मंडला रेत आर्ट एक पवित्र अनुष्ठान का हिस्सा है। भिक्षु महीनों की साधना के बाद विभिन्न रंगीन रेत से जटिल मंडला आकृतियां बनाते हैं। यह कला बौद्ध ब्रह्मांड विज्ञान (बुद्धिस्ट कॉस्मोलॉजी) और ध्यान का प्रतीक मानी जाती है।
हिन्दू परम्परा में मंडला
भारतीय परम्परा में मंडला को ‘दिव्य ऊर्जा चक्र’ के रूप में देखा जाता है। यह योग और ध्यान में केंद्रितता बढ़ाने का साधन है। मंदिरों, यंत्रों और वास्तुशास्त्र में मंडला डिज़ाइनों का व्यापक उपयोग किया जाता है।
रेत से मंडला बनाने की प्रक्रिया
लामा चोसफेल जोत्पा ने बताया कि, ‘पहले एक जटिल डिज़ाइन तैयार किया जाता है, जो ब्रह्मांडीय संतुलन और आध्यात्मिक ऊर्जा को दर्शाता है। इसमें प्राकृतिक और रंगीन रेत का उपयोग किया जाता है, जिसे महीन बनाया जाता है।’
ध्यान और समर्पण का केन्द्र है मंडला
उन्होंने आगे बताया कि, ‘भिक्षुओं द्वारा शांति और एकाग्रता के साथ रेत को धीरे-धीरे सजाते हैं, जिससे एक सुंदर आकृति उभरती है। उस आकृति के समक्ष बैठकर विश्व शांति के लिए ध्यान करते हैं। इस आकृति से एक आध्यात्मिक ऊर्जा का जीवन में संचार होता है।’
आध्यात्मिकता और जीवन दर्शन का प्रतिबिंब है मंडला
उन्होंने बताया कि, ‘मंडला पूर्ण होने के बाद इसे जल में प्रवाहित कर दिया जाता है, जो अनित्य और जीवन की क्षणभंगुरता का प्रतीक है। मंडला रेत आर्ट केवल एक कला रूप नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता और जीवन दर्शन का प्रतिबिंब है। यह न केवल बौद्ध और हिन्दू परंपराओं में पूजनीय है, बल्कि आधुनिक ध्यान और कलात्मक अभिव्यक्ति का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है।’
बौद्ध ब्रह्मांड विज्ञान (बुद्धिस्ट कॉस्मोलॉजी)
बौद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान बौद्ध धर्मग्रंथों और टीकाओं के अनुसार ब्रह्मांड के आकार और विकास का वर्णन है। इसमें एक लौकिक और एक स्थानिक ब्रह्माण्ड विज्ञान शामिल है। लौकिक ब्रह्माण्ड विज्ञान विभिन्न युगों में वैकल्पिक ब्रह्मांडों के निर्माण और विलय की समयावधि का वर्णन करता है। स्थानिक ब्रह्माण्ड विज्ञान में एक ऊर्ध्वाधर ब्रह्माण्ड विज्ञान, प्राणियों के विभिन्न विमान शामिल हैं, जिसमें प्राणी अपने गुणों और विकास के कारण पुनर्जन्म लेते हैं। कहा जाता है कि पूरा ब्रह्मांड पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष के पांच मूल तत्वों से बना है। बौद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान भी कर्म की मान्यता से जुड़ा हुआ है। परिणामस्वरूप, कुछ युग सामान्य अच्छाई के कारण समृद्धि और शांति से भरे होते हैं, जबकि अन्य युग दु:ख, बेईमानी और छोटे जीवनकाल से भरे होते हैं।