Chennai : तमिलनाडु के मदुरै में हुआ सांडों के खेल ‘जल्लीकट्टू’ का शुभारंभ

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खिलाड़ियों और सांड किड्स किस्से की आकस्मिक व्यवस्था की गई

चेन्नई : तमिल वार्षिक त्योहार, पोंगल का मदुरै, पुदुकोट्टई, तिरुचिरापल्ली और तंजावुर जैसे जिलों में अधिक उत्साह है, क्योंकि यह प्रसिद्ध और प्राचीन कॉल से बैलों के साथ खेल का रोमांचकारी त्योहार- “जल्लीकट्टू” आज सोमवार से आरंभ हो गया। पश्चात विचारधारा के लोगों के अनुसार यह जल्दी कटु का खेल स्पैनिश बुलफाइट्स के समान है, जिसका इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है।

दरअसल, इस कड़ी में खेल की मान्यताओं के अनुसार सबसे उपयुक्त दूल्हे का चयन करने के लिए आयोजित की गई थी, जो बाद में एक प्रथा जैसी बन गई। यह ऐतिहासिक खेल जल्लीकट्टू प्रतियोगिता सोमवार को मदुरै के अवनियापुरम में शुरू हो गई। लोगों में रोमांस और उत्साह देखने को मिला। खेल के पहले नियम अनुसार शासन की ओर से बैलों तथा खिलाड़ियों की पूर्व स्वास्थ्य जांच की गई। साथ ही साथ घायल होने वाले खिलाड़ियों के चिकित्सा की पूरी व्यवस्था तैनात की गई थी।

बतादें कि जल्लीकट्टू एक सदियों पुराना पोंगल (मकर संक्रांति) सांडों के साथ खेलने की प्रथा है, जो ज्यादातर तमिलनाडु राज्य में पोंगल उत्सव के हिस्से के रूप में मनाया जाता है। खेल में, एक बैल को लोगों की भीड़ में छोड़ दिया जाता है और खिलाड़ी बैल की पीठ को पकड़ने की कोशिश करते हैं, जिससे सांड को रोकने की शर्त निर्धारित होती है। इस प्रकार से जो सांड को काबू में कर लेता है, वह विजेता होता है।

प्रतिभागियों और बैल दोनों को चोट लगने के जोखिम के कारण, पशु अधिकार संगठनों ने खेल पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित कर दिया लेकिन आवाम की काफी विरोध के बाद खेल के लिए विशेष ऑर्डिनेंस पास किया गया। हालांकि, प्रतिबंध के खिलाफ लोगों के लंबे विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मई 2023 में तमिलनाडु सरकार के कानून को इस खेल को आयोजित करने की अनुमति से इसका आयोजन आरंभ कर दिया।

बताया जाता है कि जल्दी कट्टू जी से पश्चिमी देशों में बुल फाइट का नाम दिया गया है, वह 400-100 ईसा पूर्व से इसका आयोजन एक संस्कृत प्रथा के रूप में चला आ रहा है। जल्लीकट्टू शब्द दो शब्दों से बना है, जल्ली (चांदी और सोने के सिक्के) और कट्टू (बंधा हुआ)। किस खेल में विशेष कर लोपुलिकुलम या कंगायम इस खेल के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बैल की नस्ल है, जिसकी शरीर अत्यंत ठोस एवं गाठी हुई होती है और यह सांड अत्यंत फुर्तीले होते हैं। यही कारण है कि त्योहार में शरीक होने वाले और जीतने वाले बैलों की बाजार में काफी मांग होती है। लोगों का कहना है कि किसी नाते इस नस्ल का संरक्षण बना हुआ है।