जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने रिटायर कर्मचारी के पेंशन परिलाभ रोकने को मनमाना और अवैध माना है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह तीन माह में रिटायर कर्मचारी की ओपीएस के तहत बकाया पेंशन और ग्रेच्युटी नौ फीसदी ब्याज सहित अदा करे। जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश रमेश कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह बात समझ से परे है कि जब याचिकाकर्ता की नियुक्ति वर्ष 1982 में हुई थी और उस समय पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू थी तो उसे एनपीएस अपनाने के संबंध में विकल्प क्यों मांगा गया।
याचिका में अधिवक्ता सुनील समदडिया ने बताया कि याचिकाकर्ता वर्ष 1982 में अजमेर नगर निगम में चालक पद पर नियुक्त हुआ था। वहीं वर्ष 1985 में उसकी सेवा समाप्त कर दी गई। इसे लेबर कोर्ट में चुनौती देने पर अदालत ने 13 अप्रैल, 1994 को बर्खास्तगी रद्द कर उसे सेवा में बहाल करने को कहा। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से पेश याचिका को एकलपीठ ने खारिज कर दिया और बाद में खंडपीठ ने भी बिना वेतन बहाली करने को कहा। जिसकी पालना में 8 फरवरी, 2001 को याचिकाकर्ता को वर्ष 1994 से बहाल कर दिया। याचिका में कहा गया कि वर्ष 2006 में उसे नियमित वेतन श्रृंखला दी गई, लेकिन बाद में उसे वापस ले लिया। आखिर में अदालती आदेश के बाद उसकी नियमित वेतन श्रृंखला को वापस बहाल कर दिया। इसी दौरान वर्ष 2016 में वह रिटायर हो गया, लेकिन विभाग ने उसे ग्रेच्युटी व पेंशन का हकदार नहीं माना और राशि नहीं दी। इसलिए उसे यह राशि दिलाई जाए। जिसका विरोध करते हुए सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को एनपीएस का विकल्प अपनाने के लिए दो बार नोटिस दिया गया, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। ऐसे में वह पेंशन परिलाभ का हकदार नहीं है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को ब्याज सहित पेंशन व ग्रेच्युटी देने को कहा है।