लखनऊ: (Lucknow) कांग्रेस ने जातिगत जनगणना पर पूरे प्रदेश में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है। इसी बहाने वह पिछड़ा वर्ग में अपनी पैठ गहरी करने की कोशिश में लगी हुई है। कांग्रेस के इस अभियान से समाजवादी पार्टी का एजेंडा फींका पड़ता दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के साथ चल रहे मनमुटाव का एक प्रमुख कारण यह भी है। राष्ट्रीय स्तर गर भले ही कांग्रेस बड़ी पार्टी है लेकिन उप्र में सपा उसे सेंधमार के रूप में देख रही है।
यही कारण है कि अभी दो दिन पूर्व सपा प्रमुख ने कांग्रेस को ओबीसी वर्ग का विरोधी करार दिया। कांग्रेस ने भी अखिलेश की बातों को तवज्जो देना छोड़ दिया है। सूत्रों का कहना है कि वह बसपा के साथ गठबंधन करना चाहते हैं लेकिन यह भी नहीं चाहते कि समाजवादी पार्टी से वे खुद किनारा करें। इसके पीछे कारण है कि इंडिया गठबंधन के दूसरे दलों से कांग्रेस नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती। वह चाहती है कि सपा खुद उससे अलग होने की घोषणा कर दे, जिससे उसके पास बहाना हो जाय कि उसकी गलती नहीं है।
अभी मध्य प्रदेश में एससी-आरक्षित चंदला विधानसभा क्षेत्र में सपा उम्मीदवार पुष्पेंद्र अहिरवार के समर्थन में एक रैली को संबोधित करते हुए अखिलेश ने कहा था कि भाजपा और कांग्रेस दोनों के सिद्धांत समान हैं। जो लोग कभी कांग्रेस में थे, वे भाजपा में पहुंच गए और भाजपा वाले कांग्रेस में पहुंच गए हैं। अखिलेश यादव यहीं नहीं रुके। आगे उन्होंने कहा कि अगर आप गहराई से देखें तो कांग्रेस और भाजपा या उनके कार्यक्रमों और सिद्धांतों में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने कांग्रेस को धोखेबाज पार्टी भी करार दिया।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हर्ष वर्धन त्रिपाठी का कहना है कि सबकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा है। गठबंधन ही जब स्वार्थ पर टीका हो, उसका कोई सिद्धांत न हो तो फिर वह टिकाऊ नहीं हो सकता। इनमें जिसका जिससे स्वार्थ सिद्ध होगा, वह उसके साथ जाएगा। कांग्रेस को सपा के साथ स्वार्थ सिद्ध होता नहीं दिख रहा है। इस कारण वह किनारा करना चाहती है। पिछड़ा वर्ग को मिलाने की कोशिश करेंगे तो स्वभावत: सपा नाराज होगी और यदि दलित को मिलाने की कोशिश करेंगे तो बसपा नाराज होगी।