आज हिंदी दिवस
धमतरी : बदलते समय के साथ अंग्रेजी भाषा का उपयोग अधिक से अधिक हो चला है। यही कारण है कि आज के समय में हिंदी की गिनती स्कूलों से गायब हो चली है। स्कूलों में भी अब पहले की तरह हिंदी की गिनती केवल पढ़ाई जाती है, लिखाई नहीं जा रही। स्कूलों में भी बच्चे गिनती लिखते तो राेमन में हैं पर पढ़ते हिंदी व अंग्रेजी दोनों में। हिंदी की गिनती यदा कदा पुराने दुकानदारों की बहीखाता में नजर आ जाती है।
अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन के चलते हिंदी के अंकों का चलन अब बंद सा हो गया है। यहां तक कि बच्चे स्कूल में रोमन में गिनती लिखते हैं। धमतरी जिले में के अनेक सरकारी स्कूल के तीसरी कक्षा तक के बच्चे सौ तक गिनती तक नहीं जानते। इधर कुछेक सालों से बच्चों को कक्षाओं में हिंदी की गिनती ही नहीं सिखाई जा रही। बच्चे लिखते तो वन हैं, पर पढ़ते एक हैं। बदली परिस्थिति का हाल यह है कि बच्चे अंग्रेजी गिनती के अंक तो पहचानते हैं, लेकिन हिंदी के नहीं। हिंदी के अंक लिखने पर न तो संख्या पहचान पाते हैं और न ही बता पाते हैं कि संख्या कौन सी है?
शिक्षकों द्वारा ब्लैक बोर्ड अथवा कापी, स्लेट पर लिखे जाने वाले अंग्रेजी के अंक को हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में ही बच्चे भली-भांति उच्चारित कर लेते हैं, किंतु हिन्दी का अंक देखकर होशियार बच्चों को भी पसीना आ जाता है। कारण पूछने पर कई स्कूलों के शिक्षकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अंग्रेजी के अंक का प्रचलन व्यापक है, जबकि हिंदी के अंकों का प्रयोग सिमटकर रह गया है। पहली कक्षा से ही बच्चों को हिन्दी अंक से दूर किया जा रहा है। इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि भारत देश के बच्चे अपनी ही मातृभाषा के अंक को भूल जाएंगे। अंग्रेजी के प्रति शालाओं के शिक्षकों के इस प्रेम पर अनेक शिक्षाविदों, चिंतकों और प्राध्यापकों ने चिंता जाहिर की है।
जिला हिंदी साहित्य समिति की अध्यक्ष डा सरिता दोशी का कहना है कि हिंदी भाषा के व्यापक प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। स्कूलों में अंग्रेजी गिनती के साथ ही साथ हिंदी के अंकों का भी ज्ञान कराया जाना चाहिए, ताकि बच्चे हिंदी भाषा के अंकों को भली भांति जान समझ सकें।