मुंबई : महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी और केईएस श्राफ काॅलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रेमचंद जयंती संबंधित संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर अकादमी के कार्याध्यक्ष शीतला प्रसाद दुबे ने उपर्युक्त बात कही। उन्होंने कहा कि अकादमी साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं रचनात्मक बिंदुओं पर आधारित कार्यक्रम के लिए प्रतिबद्ध है।बीज वक्तव्य देते हुए डॉ सत्यदेव त्रिपाठी ने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों के संदर्भ में जीवन के विविध पक्षों को केंद्रीयभूत तत्व के रूप में उद्घाटित किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों पर सबसे अधिक नाटक खेले गए जबकि उनके नाटकों को मंचित नहीं किया गया।
प्रथम-सत्र की अध्यक्ष डॉ उषा मिश्रा ने कहा कि प्रेमचंद भारतीय समाज के और विशेष अतिथि के रूप में डाॅ रेखा शर्मा ने मुंशी प्रेमचंद के साहित्य पर प्रकाश डाला। श्यामसुंदर पांडेय, डॉ दिनेश पाठक, डॉ अंजना विजन और डॉ संगीता ठाकुर ने विषय पर अपना वक्तव्य दिया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ सतीश पांडेय ने की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने भारतीय समाज की ग्रामीण दशा को उद्घाटित करते हुए अंग्रेजों की गुलामी के विरोध और स्वतंत्रता प्राप्ति के सूत्रों को अपने साहित्य का विषय बनाया। इस सत्र में डॉ मनप्रीत कौर, डॉ रवीन्द्र कात्यायन, डॉ महात्मा पांडेय और डॉ सत्यवती चौबे ने प्रेमचंद के साहित्य के अनेक प्रसंगों की चर्चा करते हुए उनकी प्रासंगिकता को उद्घाटित किया।
कार्यक्रम में मेहुल वाघेला, विकास दुबे और आशा ने प्रेमचंद की कहानी ‘ठाकुर का कुआं’ की शानदार नाट्यप्रस्तुति की।
समापन-सत्र में डाॅ संतोष कौल और उपस्थित विद्वानों ने अभिमत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में संयोजिका डॉ उर्मिला सिंह के साथ अकादमी के सदस्य अमोल पेडनेकर, आनंद सिंह, मार्कंडेय त्रिपाठी, गजानन महतपुरकर आदि ने विशेष भूमिका का निर्वाह किया। सैकड़ों की संख्या में उपस्थित प्राध्यापकों,विद्यार्थियों तथा हिंदी प्रेमियों की सक्रिय भागीदारी से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।